Sunday, January 30, 2011

समाज

समाज

सिना फौलादी है
बाजुओं में ताकत है
जुबान में हिम्मत है
फिर भी
 चौंक कर
क्या करोगे
यह जानकर कि
तुम
बहुत बौने हो
बात नहीं करोगे कि
तुम्हारे पास
शब्द कम है
कब तलक
शर्म करोगे कि
तुम
बहुत बौने हो
तुम
बोलना नहीं चाहते
क्योंकि
तुम
बहुत बौने हो
राष्ट्र को गर्व है
वर्ग को तुम्हारे नाम से
जाना जाने लगा है
फिर भी
छुपे रहोगे घरों की चहारदीवारियों के बीच
क्योंकि तुम
बहुत बौने हो...।
 

Saturday, January 29, 2011

विकास तो बच्चा है जी

विकास तो बच्चा है जी

सुरेश समाज का एक ऐसा पात्र है जिसने कभी स्कूल का रुख नहीं किया। उम्र के नौवें पड़ाव पर भी वह खुले बदन सड़कों पर गिल्ली-डंडा खेल रहा है। बस सर जी, यही शब्द है उसके कोष में। आते-जाते हर वक्त पूछता है- सर जी कहां जा रहे हैं बाजार। क्या खाये सर जी। आफिस जा रहे हैं। उसकी पांच वर्षीय बहन है मुन्नी। और उससे छोटी है एक नन्की। उम्र करीब दो साल। हर समय अपने भाई या बहन के गोद में लिपटी रहती है। तीनों कालनी के मुंहाने पर एक झोपड़ी में रहते हैं। कालनी के आलीशान मकानों में जब शाम को रोशनी जलती है उसका झोपड़ अंधेरे में नहा उठता है। देर शाम बापू आते हैं काम से लौटकर, दारू पीकर। रेडियो जरूर उसकी झोपड़ी में है जो कभी-कभी रात को बजती है जब बापू मूड में होते हैं। मां दिनभर काम-काज कर बच्चों को पालती है। सुरेश उसी झोपड़ी के आगे चापाकल के सामने बैठा मिलता है। अक्सर नहाते या खेलते। प्रदेश में विकास दिख रहा लोगों को। बड़े-बड़े निवेशकों को यहां इस प्रदेश में वो सबकुछ दिखाई पड़ रहा है जो आज तक किसी प्रदेश में दिखा ही नहीं। सो, चारों तरफ सुशासन, विकास की ही बात हो रही है। पर विकास यहां उस नामचीन कलाकार एके हंगल की तरह है जो लाचार, बिस्तर पर रेंगता दिखता है। विकास कहां है। उस
झोपड़ी में सो रहे सुरेश तक कौन पहुंचायेगा विकास की किताब। कौन उसे स्कूल का रास्ता दिखायेगा। शायद
कोई नहीं। किसी के पास समय कहां है सुरेश, मुन्नी और नन्की के बारे में सोचने की। और एक सुरेश है। उसकी आत्मसंतुष्टि देखिये। दीपावली के महज दो दिन बचे थे। उसकी मुन्नी भी मुझे देखते ही अब बड़े भाई की नकल करते पूछती है, सर जी कहां जा रहे हैं। कभी-कभी मुस्कुराती है फौजी स्टाइल में सलाम करती है। एक दिन पटाखा खरीदने के लिये पैसे मांगती है-सर जी कुछ पैसे दो ना। अस्पष्ट भाषा होने के कारण मैं पीछे मुड़कर पूछता हूं-क्या कहा। सुरेश तपाक से कहता है नहीं सर जी कुछ नहीं, आप जाइये और अपनी छोटी प्यारी मुन्नी को डांटता है सर जी से पैसा मांगती है। अब जब भी मुन्नी देखती है उसके चेहरे पर सिर्फ दर्द है। सिर्फ सलाम करती है, हंसती है। उस हंसी के पीछे का मर्म वो दर्द, पीड़ा विकास से दूर है। विकास की राह उसकी झोपड़ी तक नहीं पहुंचती। अक्षर की दुनिया से दूर सरकार के पास अखबारों में बयान देने से फुर्सत कहां। हाकिम हैं फाइलों से निकलने, बाहर झांकने की जरूरत कहां। मुन्नी, सुरेश नन्की क्या कभी क,ख,ग, की दुनिया से बाबस्त हो पायेंगे। शायद नहीं। योजनायें कई हैं सरकार के पास। लोगों ने जमकर पिछले चुनाव में नीतीश सरकार को समर्थन दिया। अखबार वालों, चैनलों ने विकास को सरजमीं पर उतरते देखा, सराहा। पर आज सुरेश एक प्रश्न लेकर खड़ा है अपने झोपड़ी के बाहर। लोगों के पास विकल्प क्या था? लालू का आतंक, साधु की दादागिरी देखने की हिम्मत उनमें थी नहीं। पंद्रह वर्षों का विकृत चेहरा सामने था। कांग्रेस का हाथ आम लोगों से काफी दूर। ऐसे में उस जंगलराज से बेहतर यह हवा-हवाई बातें ही सही। विकास होगा। इसी उम्मीद, विश्वास में सुरेश भी हर सुबह झोपड़ी से बाहर निकलता है। सुबह-सवेरे बच्चों को भारी बस्ता लादे, बस की इंतजार में खड़े, स्कूल जाते देख पूछता है- विकास तो अभी बच्चा है ना सर जी। मुन्नी कहती है अभी हम बच्चे हैं विकास होगा तो बापू हमें दारू पीकर पीट-पाट नहीं करेंगे। मइया से झगड़ेंगे नहीं। हाल ही में सुरेश की मां घर छोडऩे की धमकी दे रही थी। वह पति पर दबाव दे रही थी अब तो पन्नी पीना बंद करो। बदले में पति ने पूरे घर को तहस-नहस कर दिया। यह भी नहीं सोचा कि उसकी पत्नी फिर मां बनने वाली है। आखिर यह दोष उस पन्नी की है जिसे सरकार ने हर चौराहे पर बेचने की खुलेआम इजाजत दे रखी है। सुरेश हर रोज खाली पन्नी को बापू के सिरहाने से उठाकर फेंकता है। मुन्नी भी खुले बदन नन्की को गोद में लिये घूमती रहती है। विकास होगा तो उसे भी तन ढकने को कुछ मिल जाये शायद। खुले बदन को छुपाती वह हर रोज बड़ी हो रही है लेकिन अपना विकास तो अभी बच्चा है जी। सुरेश फिर उसी झोपड़ी के बाहर खड़ा है। मुन्नी पूछती है- भइया ये विकास किसका नाम है?

Friday, January 28, 2011

सच को मत बिकने दो

सच को मत बिकने दो
सबसे ताकतवर तंत्र को क्या हो गया है। न्याय-अन्याय के ताने-बाने सिकुड़ते जा रहे हैं। उस तंत्र पर गण का भरोसा शायद हमें,आपको, हम सबको नहीं रहा। हक में फैसला मिलने का यकीन नामुमकिन सा दिखता है। इसके बाद न्याय के तमाम रास्ते बंद, खत्म से दिखते हैं। न्यायपालिका। क्या आप इस तंत्र को आज भी न्याय के भरोसेमंद मानते हैं या उस वटवृक्ष में पलता-बढ़ता पुष्पित होते देख रहे हैं जो खोखला, भ्रष्ट हो चुकने की स्थिति में
लकवाग्रस्त हो चुका है। या फिर उस दल-दल पथ पर अगुवा बना बैठा है जिस होकर पाप व पुण्य का फैसला
संभव नहीं। न्याय देने वाले हाथ गिरवी पड़ रहे हैं। काला कोट वाले तराजू पर इंसाफ को तौल रहे हैं। जहां आम आदमी के लिये इंसाफ की देवी को कलंकित, अमर्यादित करने से भी वे नहीं हिचकते। जिन्हें सलाखों के पीछे होना चाहिये समाज के मुंशी बने हैं और उत्सव जैसा होनहार यंग पढ़े-लिखे नौजवान को खंजर उठाने की जरूरत आन पड़ती है। यानी इस मर्यादित सिस्टम में भी छेद साफ, चौड़ा हो गया है। खगोल विज्ञान के महारथी जल्द ही रात में भी धरती से दूसरा सूरज उगाने की तैयारी में हैं। इसी साल आकाश में प्रकाश का ऐसा गजब नजारा दिखेगा जिससे आपको रात में सूर्य की रोशनी नजर आयेगी। पर यहां न्याय का विहान कब होगा। हम आज वहां खड़े हैं वहां कातिल को मुंसिफ बनाने की तैयारी हो रही है। दुर्भाग्य है। जहां न्यायपालिका से भी लोग ना उम्मीद हो उठे हों। उस समाज, देश का क्या होगा सोचनीय है। यहां इस मुल्क का कानून मंत्री ही स्वयं बोफर्स मामले में क्वात्रोच्चि के बैंक खाते से रोक हटाने का मार्ग प्रशस्त करने की पहल करता दिखे और आम गण न्यायपालिका से रहम, न्याय की भीख मांगता खड़ा हो। इतना ही नहीं, वह आम आदमी अपना सब कुछ देने को तैयार बैठा हो बस बदले में शर्त इतनी कि न्याय जल्द दे दो। जल्द न्याय पाने के लिये भारत की सबसे महत्वपूर्ण खुफिया एजेंसी की पूर्व महिला अधिकारी निशा प्रिया भाटिया हाई कोर्ट में कपड़े उतारने को विवश दिखती है। अर्धनग्न हो जाती है उस इंसाफ की मंदिर में जहां से वह निराश हो चुकी है और बदले में उसे उस वक्त भी क्या मिलता है सिर्फ एक और कलंक। उसपर मानसिक संतुलन खा देने का आरोप। वाह रे सिस्टम। पुणे के एक 60 वर्षीय बुजुर्ग व्यापारी तिकोठकर जमीनी विवाद में कोर्ट का चक्कर लगाते इतने थक गये कि आखिकार उन्होंने हाईकोर्ट को बीस हजार रुपये का चेक यह मनुहार लगाते भेज दिया कि रुपये ले लो पर तारीख मत दो। तिकोठकर जज को ई-मेल भी करते हैं कि मेरे मामले का जल्द निबटारा हो। आखिर इस मजबूत तंत्र को हो क्या रहा  है। जिस देश में राज्यपाल के आदेश के बाद मुख्यमंत्री पर अभियोजन की अनुमति मिले और पूरा विधायिका ही राज्यपाल की भूमिका पर सवाल दागने लगे। पक्ष-विपक्ष एकदम आमने-सामने दिखे। जहां फैसला आने से पहले पूरे न्याय संगत सिस्टम को मैनेज कर लिया जाये। भला उस देश के बारे में सोचिये जहां अजमल कसाब के लिये तो मनमाफिक वकील कोर्ट में उसे नाबालिग ठहराने पर अडिग खड़ा हो लेकिन रूपम पाठक के वकील को धमकी मिले। रूपम का केस लडऩे को कोई काला कोट तैयार न दिखे। ये न्यायपालिका के सामने कशककश क्यों? आरूषि-हेमराज मर्डर में पिता डा. राजेश तलवार हों या रूचिका हत्याकांड का वह राठौर दोनों पर खंजर चलाने वाला उत्सव क्या समाज का वह आईना नहीं है जो हम सबों के सामने न्यायपालिका का असली चेहरा परोस रहा है। उत्सव की भावना को पूरा देश समझ रहा है। उसकी सोच, मंशा, इशारे को सभी समझ रहे हैं। शायद वो न्याय देने वाले भी जो उसे काल कोठरी में भेजने का फरमान बार-बार देने को विवश हो रहे हैं। क्या न्याय देने वाले नहीं समझ रहे कि उनकी जेब में गांधी गरम हो रहे हैं या फिर चंद सुर-सुरी  के आगे उनकी आंखें आज लोअर से लेकर सर्वोच्च न्याय के मंदिर तक इंसाफ की देवी की मानिंद आंख पर पट्टी बांध बैठ गये हैं जहां से वही दिखता है जिसे पूरी दुनिया सह-स्वीकार नहीं कर सकती। सच जहां खुलेआम बिकने को मजबूर बैठा हो और झूठ शान से दुष्शासन बन उत्सव जैसे भविष्य को छलनी करने पर आमादा हो उस तंत्र से ना उम्मीद होना स्वभाविक।

Friday, January 21, 2011

चुम्मा चट-चट महा मेगा शो

चुम्मा चट-चट महा मेगा शो
आज रात नौ बजे। कहीं जाइयेगा मत। सिर्फ मी टीवी पर। नहीं-नहीं सिर्फ बी टीवी पर। नहीं भाई कहा ना सिर्फ सी टीवी पर। एक्सक्लूसिव लाइव शो। पूरे देश में एक साथ इतना बड़ा हंगामा। दो सौ संवाददाताओं की टीम। इस महामेगा शो चुम्मा चट-चट को कवरेज करने को तैयार। चुम्मा चट-चट जरूर देखें। महान पारिवारिक मनोरंजन से भरपूर शो चुम्मा चट-चट। बच्चों को जरूर दिखायें महान ज्ञानवद्र्धक शो। खासकर जिनकी उम्र 18 से कम हो
उन्हें रातभर जगा कर दिखायें। मैं तुलसी तेरे आंगन की के बाद सबसे सुपरहिट चुम्मा चट-चट आज रात ठीक नौ बजे। सिर्फ इसी चैनल पर। इन एसोसिएशन बूथ मैन फोर्स, अनवाटेंड 72 एंड परफेक्स कैप्सूल व तेल जो दे
आपको पुरुषों सी मर्दानगी, स्त्री का समाधान, शुक्रवर्धक, धातुवर्धक, शक्तिवर्धक। पत्नी भी संतुष्ट आप भी खुश।
चुम्मा चट-चट। आज रात। नामी हीरोइनों का मेला जो उतरेंगी आपकी बेडरूम तक। आज रात। पाकिस्तान से
लेकर विदेशी माल भी आयेंगी मेरे श्रीमान्। फिर देर किस बात की। हो जाइये तैयार। हमारे चैनल पर मल्लिका है, समीरा है, हाट बिपाशा है। वीना मल्लिक के साथ अस्मित हैं चादरों में लिपटे। और तो और जलवा बिखरेने को तैयार है पावेला एंडरसन। फिर आपको चाहिये क्या। चुम्मा चट-चट में। खूब चाटेंगी दर्शकों को। दर्शक भी खूब चटायेंगे एक दम थ्री डी। पूरे लाइव शो के दौरान सिर्फ इसी चैनल पर चुम्मा चट-चट में।
                        मैंने देखा था यार, प्रोमो में। क्या खूब चुम्मा लेती है। ऐश, विद्या, करीना भी फेल। न जाने क्या-क्या करती है। जैसे कोई विदेशी चुंबन प्रतियोगिता हो। तभी लाइट आ जाती है। लोग घरों को भागने लगते हैं। सड़कें एकदम सुनसान। सभी दुकानें बंद। कहीं नौ न बज जाये। कमिंग अप चुम्मा चट-चट। टीवी पर लगातार प्रचार आ रहा है। थोड़ी देर में इस ब्रेक के बाद चुम्मा चट-चट। नौ बज चुके हैं। लोग चिपके हैं टीवी से। एंग्री यंग मैन नायक गंभीर है। तभी अनवाटेंड 72 का प्रचार। मैं अभी प्रेगनेंट नहीं होना चाहती। ऊर्फ ये प्रचार भी। खैर, नायक फिर अवतरित होता है। होठों का चुंबन बाकी है। और घरों से दर्शकों की तालियों की आवाज। तभी कैटरीना लक्स लेकर आ जाती है मेरी खूबसूरती का राज। सोने से भी सोना लगे सलोना मेरा यार। लक्स लगाओ सोने का इनाम पाओ। रूपा बनियान है तो चलो आगे। लोगों की नजर एकटक टीवी पर। कहीं बाथरूम से बिकनी में पामेला न निकल जाये यार। नये साल पर टीवी दर्शकों को मालामाल होने का मौका मिलने वाला है भाई। आइटम गर्ल याना गुप्ता कहीं गिफ्ट में मिले अधोवस्त्र में न आ जाये। ऐश्वर्या भी राज खोलने वाली है। वह बतायेगी सलमान व विवेक के उस गुप्त हिस्से का राज, जहां उनके दिमाग से लैप्टिन हारमोन सक्रिय होकर व्यक्ति में यौवनारंभ पर आक्रमण करता है। अभी तक यह बात सिर्फ शोधकर्ता ही जानते थे जिन्होंने चूहों पर यह प्रयोग किया था तो पाया कि दिमाग के हाइपोथेलमस जिसे प्रिमेमेलरी न्यूक्लियस में स्थित इस जगह को लैप्टिन हारमोन प्रभावित करता है जिससे मादा में यौवन की शुरूआत होती है। यह बात पता नहीं कैसे लीक हो गयी कि सलमान व विवेक के दिमाग में यौवनारंभ वाली जगह की खोज ऐश कर ली है। इधर, विदेशी प्रकाशक मुंहमांगी रकम लेकर ऐश के पास पहुंच चुके हैं। उधर, अनिल कपूर की 24 दिसंबर की जन्म दिन पार्टी में एक फैन अजय ने सलमान के गाल पर चुंबन दे दी। सलमान समझ गये ऐश ने खोल दिया उनका राज। आपे में उन्होंने अजय को एक झापड़-तमाचा दे मारा।
                      तभी पावन फिर कट। ओह नो। उस सीन का क्या होगा यार। जो झलकी में देखी थी। बिपाशा स्वीमिंग सूट में निकलती है प्रियंका के साथ और जान व अभिषेक निकलते हैं दोस्ताना स्टाइल में। तभी वाह रे सुशासन की सरकार। लाइट आ गयी। इठलाती, बलखाती, आंखों से शर्म उतारे, चमकती नायिका नायक के पैरों को चूमती है। फिर छाती तक पहुंचती है। माथे को चूमती है। चेहरे को हाथों से छुपाकर जाने लगती है लेकिन आज का बिग बास धर्मवीर का वह डायलाग दोहराता है-होठों का चुंबन बाकी है और बेबस नायिका बिग बास को जिंदा रखने के लिये होठों की ओर बढ़ती है। दर्शक सीटी बजाते हैं। नायक ओ मेरी मेहबूबा, मेहबूबा, मेहबूबा गाने लगता है।
             टीवी शो के एंकर मि.तोता अपने कोलकाता स्थित संवाददाता मिस किस को फोन लगाते हैं। हमारे साथ हैं कोलकाता से मिस किस। हां तो किस बतायें कोलकातावासियों की क्या राय है। दिखायेंगे, चलेंगे मुंबई व दिल्ली भी जहां से कई दर्शक हमारे साथ जुड़ गये हैं चुम्मा चट-चट में। आप कहीं जाइयेगा मत। बने रहियेगा हमारे साथ सिर्फ इसी चैनल पर महान पारिवारिक शो चुम्मा चट-चट में तब तक एक ब्रेक।       

चुम्मा चट-चट महा मेगा शो

चुम्मा चट-चट महा मेगा शो आज रात नौ बजे। कहीं जाइयेगा मत। सिर्फ मी टीवी पर। नहीं-नहीं सिर्फ बी टीवी पर। नहीं भाई कहा ना सिर्फ सी टीवी पर। एक्सक्लूसिव लाइव शो। पूरे देश में एक साथ इतना बड़ा हंगामा। दो सौ संवाददाताओं की टीम। इस महामेगा शो चुम्मा चट-चट को कवरेज करने को तैयार। चुम्मा चट-चट जरूर देखें। महान पारिवारिक मनोरंजन से भरपूर शो चुम्मा चट-चट। बच्चों को जरूर दिखायें महान ज्ञानवद्र्धक शो। खासकर जिनकी उम्र 18 से कम हो
उन्हें रातभर जगा कर दिखायें। मैं तुलसी तेरे आंगन की के बाद सबसे सुपरहिट चुम्मा चट-चट आज रात ठीक नौ बजे। सिर्फ इसी चैनल पर। इन एसोसिएशन बूथ मैन फोर्स, अनवाटेंड 72 एंड परफेक्स कैप्सूल व तेल जो दे
आपको पुरुषों सी मर्दानगी, स्त्री का समाधान, शुक्रवर्धक, धातुवर्धक, शक्तिवर्धक। पत्नी भी संतुष्ट आप भी खुश।
चुम्मा चट-चट। आज रात। नामी हीरोइनों का मेला जो उतरेंगी आपकी बेडरूम तक। आज रात। पाकिस्तान से
लेकर विदेशी माल भी आयेंगी मेरे श्रीमान्। फिर देर किस बात की। हो जाइये तैयार। हमारे चैनल पर मल्लिका है, समीरा है, हाट बिपाशा है। वीना मल्लिक के साथ अस्मित हैं चादरों में लिपटे। और तो और जलवा बिखरेने को तैयार है पावेला एंडरसन। फिर आपको चाहिये क्या। चुम्मा चट-चट में। खूब चाटेंगी दर्शकों को। दर्शक भी खूब चटायेंगे एक दम थ्री डी। पूरे लाइव शो के दौरान सिर्फ इसी चैनल पर चुम्मा चट-चट में।
                        मैंने देखा था यार, प्रोमो में। क्या खूब चुम्मा लेती है। ऐश, विद्या, करीना भी फेल। न जाने क्या-क्या करती है। जैसे कोई विदेशी चुंबन प्रतियोगिता हो। तभी लाइट आ जाती है। लोग घरों को भागने लगते हैं। सड़कें एकदम सुनसान। सभी दुकानें बंद। कहीं नौ न बज जाये। कमिंग अप चुम्मा चट-चट। टीवी पर लगातार प्रचार आ रहा है। थोड़ी देर में इस ब्रेक के बाद चुम्मा चट-चट। नौ बज चुके हैं। लोग चिपके हैं टीवी से। एंग्री यंग मैन नायक गंभीर है। तभी अनवाटेंड 72 का प्रचार। मैं अभी प्रेगनेंट नहीं होना चाहती। ऊर्फ ये प्रचार भी। खैर, नायक फिर अवतरित होता है। होठों का चुंबन बाकी है। और घरों से दर्शकों की तालियों की आवाज। तभी कैटरीना लक्स लेकर आ जाती है मेरी खूबसूरती का राज। सोने से भी सोना लगे सलोना मेरा यार। लक्स लगाओ सोने का इनाम पाओ। रूपा बनियान है तो चलो आगे। लोगों की नजर एकटक टीवी पर। कहीं बाथरूम से बिकनी में पामेला न निकल जाये यार। नये साल पर टीवी दर्शकों को मालामाल होने का मौका मिलने वाला है भाई। आइटम गर्ल याना गुप्ता कहीं गिफ्ट में मिले अधोवस्त्र में न आ जाये। ऐश्वर्या भी राज खोलने वाली है। वह बतायेगी सलमान व विवेक के उस गुप्त हिस्से का राज, जहां उनके दिमाग से लैप्टिन हारमोन सक्रिय होकर व्यक्ति में यौवनारंभ पर आक्रमण करता है। अभी तक यह बात सिर्फ शोधकर्ता ही जानते थे जिन्होंने चूहों पर यह प्रयोग किया था तो पाया कि दिमाग के हाइपोथेलमस जिसे प्रिमेमेलरी न्यूक्लियस में स्थित इस जगह को लैप्टिन हारमोन प्रभावित करता है जिससे मादा में यौवन की शुरूआत होती है। यह बात पता नहीं कैसे लीक हो गयी कि सलमान व विवेक के दिमाग में यौवनारंभ वाली जगह की खोज ऐश कर ली है। इधर, विदेशी प्रकाशक मुंहमांगी रकम लेकर ऐश के पास पहुंच चुके हैं। उधर, अनिल कपूर की 24 दिसंबर की जन्म दिन पार्टी में एक फैन अजय ने सलमान के गाल पर चुंबन दे दी। सलमान समझ गये ऐश ने खोल दिया उनका राज। आपे में उन्होंने अजय को एक झापड़-तमाचा दे मारा।
                      तभी पावन फिर कट। ओह नो। उस सीन का क्या होगा यार। जो झलकी में देखी थी। बिपाशा स्वीमिंग सूट में निकलती है प्रियंका के साथ और जान व अभिषेक निकलते हैं दोस्ताना स्टाइल में। तभी वाह रे सुशासन की सरकार। लाइट आ गयी। इठलाती, बलखाती, आंखों से शर्म उतारे, चमकती नायिका नायक के पैरों को चूमती है। फिर छाती तक पहुंचती है। माथे को चूमती है। चेहरे को हाथों से छुपाकर जाने लगती है लेकिन आज का बिग बास धर्मवीर का वह डायलाग दोहराता है-होठों का चुंबन बाकी है और बेबस नायिका बिग बास को जिंदा रखने के लिये होठों की ओर बढ़ती है। दर्शक सीटी बजाते हैं। नायक ओ मेरी मेहबूबा, मेहबूबा, मेहबूबा गाने लगता है।
             टीवी शो के एंकर मि.तोता अपने कोलकाता स्थित संवाददाता मिस किस को फोन लगाते हैं। हमारे साथ हैं कोलकाता से मिस किस। हां तो किस बतायें कोलकातावासियों की क्या राय है। दिखायेंगे, चलेंगे मुंबई व दिल्ली भी जहां से कई दर्शक हमारे साथ जुड़ गये हैं चुम्मा चट-चट में। आप कहीं जाइयेगा मत। बने रहियेगा हमारे साथ सिर्फ इसी चैनल पर महान पारिवारिक शो चुम्मा चट-चट में तब तक एक ब्रेक।       

Thursday, January 20, 2011

रावण से हार गया रामचंद्र

रावण से हार गया रामचंद्र
यह कहानी स्वास्थ्य विभाग का एक घिनौना चेहरा है। इसमें एक डाक्टर अपने मरीज से खेलता है जिंदगी तबाह कर देने वाला खेल। नकली दवाओं के सहारे शुरू होती है एक-एक बूंद खून चूस लेने का रावणी प्रपंच,जिसकी परिणति यह कि वह गरीब, बेसहारा मजदूर रही-सही पूंजी  अपनी निजी जमीन भी बेच डालता है और बदले में उसको मिलती है जिंदगी भर तिल-तिल कर मरने की सौगात। वह गंवा बैठता है अपना सबकुछ। तीन-तीन जवान बेटियां।  उन्नीस साल की शर्मिला। सत्रह की फूल तो चौदह की नीलम। सबके सब शादी के लायक। दो लड़के आठ साल का बजरंगी व पांच वर्ष का राहुल, जिन्हें देखनी है अभी पूरी दुनिया। घर में हालात से लड़ती, जूझती खुद बीमार पड़ी पत्नी गंगिया देवी। ऐसे में कौन सुने फरियाद। किससे सुनायें दरिंदगी का अफसाना। जीने के मायने उसके लिये मौन हैं। हौंसला उसके पास नहीं है। उस बेबस, लाचार, हताश मजदूर की सांसें चल रही हैं वहीं गनीमत है। उसकी जिंदगी में झांकने पर अंदर की टीस उभरती है। नाम है रामचंद्र साह। घर  बहेड़ी के सुसारी। इनकी तबीयत पिछले साल बिगड़ती है। श्री साह इलाज कराने पहुंचते हैं बहेड़ा के एक निजी नर्सिंग होम में। यहां कई दिनों तक इनका इलाज चला। जांच दर जांच होते चले गये लेकिन इनकी तबीयत लगातार बिगड़ती चली गयी। ब्लड यूरिया व सिरम क्रिटेनाइन की जांच के बाद बहेड़ा के उस रावणी डाक्टर ने इन्हें स्लाइन चढ़ाना शुरू किया। यहां तक कि श्री साह बताते हैं कि उन्हें पानी चढ़ाने के लिये बाध्य, मजबूर किया जाता रहा और जब भी वे विरोध जताते, स्लाइन चढ़ाने से मना करते डाक्टर उन पर न सिर्फ अतिरिक्त दबाव बनाता बल्कि इन्हें किडनी खराब होने की वास्ता, धमकी देकर वह रावण कलयुगी रामचंद्र का बलात इलाज करते रहे। बाद में वहां से भारी-भरकम फीस थमा दिया गया। नहीं देने की स्थिति में उनके और रामचंद्र की बेटियों की शरीर से खून निकाल लेने की धमकी दी जाने लगी। पैसे नहीं हैं तो शरीर का खून बेच लो। रावण के मुख से ऐसा सुनकर श्री साह का कलेजा फट गया। क्या करते बेचारे रामचंद्र। नतीजा, इन्हें जमीन बेचकर व पत्नी के जेवरात को बंधक बनाकर फीस भरनी पड़ी। श्री साह बताते हैं कि नकली दवा व स्लाइन चलने के कारण इनका वजन इस बीच लगातार घटता-बढ़ता रहा। बहेड़ा के उक्त डाक्टर इन्हें बार-बार स्थानीय स्तर पर जांच कराने की नसीहत देते और बदले में इनका शारीरिक शोषण लगातार करते रहे। इस बीच फीस मिल जाने के बाद रावण को लगा कि कहीं रामचंद्र उनके चंगुल से भाग न निकले सो लिहाजा वह अपने दसमुंखी नेटवर्क का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया। रामचंद्र पर उस डाक्टर ने पटना के एक निजी अस्पताल में इलाज करवाने के लिये बाध्य करने लगे। थक-हारकर रामचंद्र वहां से भागकर दरभंगा बेता स्थित एक नामी डाक्टर के पास पहुंचे। बकौल श्री साह उस डाक्टर ने इनकी जांच की और तमाम जांच करवाने के बाद रिपोर्ट में इन्हें गलत दवा के इस्तेमाल के कारण परेशानी होने की बात कही। साथ ही तत्काल आराम के लिये कुछ दवा लिखते हुये कुछ दवा जिंदगी भर के लिये दी जिससे श्री साह का वजन काफी घट गया और इन्हें आराम भी महसूस होने लगा। इस बीच जब गलत दवा देने की शिकायत श्री साह बहेड़ा के डाक्टर से करने गये तो उन्होंने गुस्से में आकर बरबाद करने की धमकी दे डाली। कहा, भाग यहां से नहीं तो तेरे पूरे परिवार को तबाह कर देंगे। घर से उठा लेने की धमकी पर भला क्या करते रामचंद्र। श्री साह जो जिंदगी से हार गये थे भला रावण से लडऩे की ताकत कहां से ला पाते। पर उन्होंने हार नहीं मानी। राम ने रावण से बदला लेने की ठान ली थी सो उन्होंने अदालत से एक वकालतन नोटिस रावण को भेजवा दी जिसमें इलाज के दौरान जुल्मों-सितम की कहानी, आर्थिक, मानसिक व शारीरिक कष्ट पहुंचाने के लिये हर्जाना देने व जमीन बेचने के लिये दबाव बनाने की शिकायत की है। श्री साह बताते हैं कि अब तो गांव में कोई मजदूरी के लिये भी नहीं बुलाता। बच्चों की परवरिश व बेटियों की शादी कैसे होगी यह भगवान ही जानें। ता उम्र दवा के लिये पैसे कहां से आयेंगे। कौन सुनेगा भला इस गरीब की बात।  इस बीच उन्होंने एसपी से भी मिलकर अपनी आपबीती सुनायी है। कहा है कि कैसे अब भी वह रावण उन्हें जान मारने की धमकी भेजवाता है। इधर, श्री साह के वकील यूएन झा कहते हैं कि इस पूरे मामले में उक्त रावण को वकालत में बेनकाब जरूर करेंगे। मगर आज रावण रामचंद्र पर भारी है। उसके पास धन है इज्जत है बंगला है कार है और रामचंद्र के पास। गरीबी के दलदल में उसकी जिंदगी से जुड़े सवाल माकूल जवाब के लिये खड़े हैं।

Tuesday, January 18, 2011

महा मेगा भूत शो खी...खी...खी...

महा मेगा भूत शो
खी...खी...खी...


चारों भूत खिखिया रहे थे। आका आजकल ब्लू मूड में हैं। कहते हैं रीना हो टीना हो जन्नत हो मीना हो कोई भी हो चलेगी। लेकिन चल यार। एक भूत चड़चड़ाया। दूसरा जोर से बुदबुदाया। चारों एक गरीब के छप्पर पर झूल रहे हैं। जैसे वीरू शोले में पानी टंकी पर बसंती के लिये सुसाइड करता दिखता है। कमीनें, तेरा खून चूसेंगे। चारों भूत गब्बर स्टाइल में फुसफुसा रहे हैं। सामने हाथ जोड़े कालिया यानी गरीबी खड़ी है। मैंने तेरा क्या बिगाड़ा भूतनाथ। मैं गरीब, लाचार जनता। पेट में एक अन्न नहीं। तन छुपाने को कुछ नहीं। भूखे बच्चे, पत्नी बीमार। मुंह में बोलती नहीं क्या कहूं सरकार। मेरे भूतनाथ। देह सूख गये हैं। फिर भी क्या मेरा खून ही सबसे सस्ता। खून चूसने का इतना ही शौक है तो जाओ न लालू, नीतीश के पास। एक चारा खाकर आराम में, दूसरे के शरीर में फिर से सत्ता का नया-नया खून। मेरे पास क्या है भूत भाई। जो घर में था सब गिरवी पड़ा है। इंदिरा आवास मांगने गया तो कहां पहले घूस दो। लौट आया खाली हाथ। और तुम भी तब से खाली-पीली मुझे ही डरा रहे हो। जाकर ललित मोदी का खून क्यूं नहीं चूसते। कलमाडी का चूसो। ना हो तो सुषमा बड़ाइक का चूसो। आईजी पीसी नटराजन तो चूसा ही अब जेल में रखकर सरकार चूस रही है तुम भी चूसो। बहुत शोषण की बात कह रही थी। नहीं हो तो बगल में रूपम पाठक मिल जायेगी। आजकल उसका भी राजहंस स्कूल पूर्णिया में बंद है। खाली बैठी है केसरी की याद में बेचारी। चूसो ना टेरेसा कैंलन को। पिछले 90 साल में सबसे कम उम्र की लड़की है जो मिस अमेरिका बनी है। पर चारों भूत भला इन बातों में कहां उलझने वाले। कुछ भी मानने को तैयार नहीं। सब नाच रहे थे, तालियां बजा रहे थे, गा रहे थे जहां चार यार मिल जाये। गरीबी ने डरते हुये पूछा-आप चारों भूत हैं और कहते खुद को यार हैं। हां, हंसते हुये चारों भूत गंभीर हो जाते हैं। ये है मेरा भाई सत्तावाद, दूसरा विपक्षवाद, तीसरा मैं प्रदेशवाद और सबसे छोटा ये समाजवाद। पर हे महानुभावों। मेरे चारों भूतवादों। क्यों मुझ जैसे गरीब के पीछे पड़े हो। क्यों नहीं जाते सट्टेबाजों, दलालों, पूंजीपतियों के पास। नहीं कुछ तो अमिताभ बच्चन के पास। बैठे-बैठे करोड़पति बना देंगे। मुझ जैसे गरीब के पास खिखिया रहे हो, डरा रहे हो। यही चाहता है मेरा आका। चारों हंसते-हंसते इमोशनल हो जाते हैं। तुम्हारा खून चूसेंगे तभी भूत बना रहूंगा। नहीं तो ये खद्दरवाले हमें चूस लेंगे। जैसे रूपम को चूसते थे। पर डरो मत। मैं तुम्हे आराम, आहिस्ता से चूसेंगे। कष्ट नहीं होने दूंगा। तुम्हें पता भी नहीं चलेगा। पता है, किसी को बताना मत, सरकारी फाइल की तरह गोपनीय बात है कि  मैं भी तुम्हारी तरह ही मजदूर था। यह रिक्शा चलाता था। वह कुली था। दिन रात मेहनत करता था। भूखे रहकर परिवार को चलाता था। और, ये हमारा छोटू। मत पूछो। लाखों घूस देकर इसे सिपाही में भर्ती कराया। ताकि समाज में यह न्याय कर सके। समाजवाद ला सके। लेकिन हम सबों के सामने ही खद्दरटोपी वाले के लाल गुर्गों ने इसकी जान ले ली। कहा साले, हमसे बड़े समाजवादी बनते हो तो ले अब गोली खा। बेटी सुनीता से जबरन हुसैनगंज के थानाप्रभारी सुशील कुमार यादव ने शादी कर ली। छह महीने तक मौज-मस्ती कर छोड़ दिया। दबंगों ने हमारी जमीन पर कब्जा जमा लिया। जो बचा हमारी जमीन का अधिग्रहण रेलवे की योजनाओं के लिये हो गया लेकिन सीओ रसीद देने को तैयार नहीं हुआ। कर्मचारी घूस मांगता था। कहता था साहेब को चाहिये। विरोध करने पर पिटाई लगी सो अलग जेल में डलवा दिया। चारों धीरे से ठहाका लगाते हैं लेकिन यह मत समझना हम इन टोपीवालों से डरते हैं। लेकिन भूत भाई। गरीबी फिर गिड़गिड़ाया। मुझे छोड़ दो ना प्लीज। भले मेरी पड़ोसी को चूस लो। क्या मस्त चीज है मेरे भाई। बिल्कुल झकास। नहीं उसे तो चूसेंगे मेरे आका। पर तुम्हें सामूहिक रूप से हम चूसेंगे-खि...खि...खि...। पर आप मत जाइयेगा कहीं। बने रहियेगा मेरे साथ। हां, डरियेगा भी मत। भूतों से हम आपको फिर मिलायेंगे। पूरी लाइव दिखायेंगे। बने रहिये हमारे साथ  महाभूत लाइव शो में खि...खि...खि...।

Saturday, January 15, 2011

फिर ना आऊंगा कभी, ये वादा है मेरा

 फिर ना आऊंगा कभी, ये वादा है मेरा

 ना बाबू, फिर दोबारा नहीं आऊंगा आपके शहर में। अब तक देश के करीब हर कोने को मैंने छूआ है। वहां की गलियों में बांसुरी बजायी है। लोगों का मन मोहा है। एवज में, लोगों ने मेरी बांसुरियों की खरीदारी बड़े शौक से की है। दरभंगा में हफ्ते भर अभी रहूंगा। यहां की गलियों को पहचानूंगा। बांसुरी बेचूंगा। खुदा मेरी तंग झोली में जितना डालेंगे लेकर इस मिथिलांचल की मिट्टी की खूशबू और याद सहेजकर चल पड़ूंगा अपने पड़ाव की ओर, फिर कोई नया शहर, अजनबी लोग, गलियां, नया मौसम। हां, कोई साथ होगा तो वो है मेरी बांसुरी। यह कहना था एक बांसुरी वाले का। कोहासे से भरी दोपहर। ठंडक ऐसी सांस लेना भी मुश्किल। लोग घरों में बंद। वातावरण में निस्तब्धता। रह-रह कर सिसकती पछिया हवा के झोंके। ठंड के थपेड़ों के मानिंद। इसी बीच सन्नाटे को तोड़ती दूर से आती सुरीली बांसुरी की तान। मानों, रूह में कोई गर्मी का एहसास, ठंडक घोल गया हो। धुनें भी ऐसी, जैसे पाश्चात्य व सदाबहार गीतों को किसी ने एक साथ पिरो दिया हो। घर आया मेरा परदेशी। बहरों फूल बरसाओ। झलक दिखला जा। कचरारे-कचरारे। लोगो के कदम ठिठक पड़ते हैं। भीड़ जुटती है। भीड़ जुटने का
अहसास बांसुरी वाले के चेहरे पर है। वह माथे पर पगड़ी को सलीके से संवारता है। एक हाथ में बांस की टहनी से सजी रंग-बिरंगी बांसुरी, दूसरे में उसकी अपनी पसंदीदा छोटी सी बांसुरी। गोया, कह रहा हो, इस छोटी सी बांसुरी में है कितने चमत्कार तो बाबू मेरे पास तो है इससे भी बढिय़ा एक  से एक बांसुरी। आओ न पास। देखो, मन हो तो लो, नहीं तो कोई बात नहीं। देखने के थोड़े ही पैसे मांगता हूं।
                               दरभंगा के रहमगंज के इस मोहल्ले में घुमते बांसुरी वाले से मैंने पूछा, कहां के रहने वाले हो भाई? तुम तो कमाल की बांसुरी बजाते हो? बांसुरी वाला मुस्कुराता है। किशनगंज के दिघलबैंक का रहने वाला हूं। नाम है किसुन। उम्र यही कोई 65 के करीब। सांवला, मझौला कद। सलीके से कटी मूंछ। माथे पर लाल रंग की पगड़ी। हाथ में सुंदर सी बांस की छोटी बांसुरी। मेरी बात सुनकर वह यूं मुझे देखता है जैसे ठहरती उसकी जिंदगी को कोई मकसद, दो कदम मिल गये हों। कहता है बाबू, ये मेरा पुश्तैनी धंधा है। बाप-दादा सभी बांसुरी बेचते थे। अब तो बांसुरी के कद्रदान रहे नहीं। मेलों-हाटों में कम दाम के बांसुरी लेकर घूमता हूं। बड़े तो नहीं पर बच्चे अभी भी इसके शौकीन हैं। बस, दिनभर में इतना कमाता हूं रोटी मिल जाती है। पत्नी को मरे अरसा हो गया। एक बेटी है पारू। शादी हो चुकी है। दामाद पुनीत। सिलीगुड़ी में बांसुरी का ही कारोबार करता है। बड़ा लड़का चलितर कोलकाता में कमाता है पर छोटका महेश उसे बांसुरी का बड़ा शौक है। लगता है यूं ही गलियों में मेरी तरह घूमेगा। 
           तब तक काफी भीड़ जुट जाती है। लोग चार रुपये से लेकर 80 रुपये तक की बांसुरी खरीदते, देखते हैं। तभी भीड़ से एक बच्चा कहता है-जरा दबंग का गाना सुनाओ न बाबा मुन्नी बदनाम हुई और मुस्कुराते किशुन मुन्नी बदनाम हुई की धुन मे ऐसे खो जाता है गोया, उसे मंजिल मिल गयी हो। उसकी बड़ी-बड़ी आंखें भीड़ में यूं गोल हो जाती है, मानो कह रही हो सिर्फ एक बार यूं ही प्यार से देख मुझे, फिर ना आऊंगा कभी ये वादा है मेरा।

Thursday, January 13, 2011

आदेश है, बलात्कारी बनों

आदेश है, बलात्कारी बनों
राज्याभिषेक हो चुका है। कलयुग सत्ता में है। पूरे देश में अब उसी का शासन, तंत्र है। उसका आदेश, निर्देश,
कानून, व्यवस्था सब मान्य, नियमानुकूल है। न्याय वही देगा, फरियाद वही सुनेगा। जनता दरबार उसी की लगेगी। जो नहीं माना, इनकार किया समझो गया काम से। खामोश, बोलती हमेशा के लिये बंद। खैर, कलयुग के बारे में और ढ़ेर सारी जानकारी बाद में। उसके बारे में और बातें करेंगे। पहले एक बात और।
                          मान लीजिये। राजीव गांधी फिर से जिंदा हो उठे हों। अब राजीव जिंदा होंगे तो जाहिर, स्वभाविक है वो देश के प्रधानमंत्री होंगे। तेज-तर्रार युवा प्रधानमंत्री। मजा आ जायेगा। सत्ता पूरा तंत्र, कार्यपालिका, न्यायपालिका, विधायिका। कानून-व्यवस्था। पुलिस। सब कुछ उन्हीं के आदेश-निर्देश पर नाचेगा।
                           एक दिन सुबह का अखबार पहुंचता है। तमाम चैनलों में खबरें ब्रेकिंग न्यूज की तरह फ्लैश हो रहीं हैं। अफरा-तफरी मची हैं। सड़कें सूनसान। सबके सब घरों में छुपे हैं। न्यूज ही न्यूज। समाचार पूरे देश को आग में झोंकने के लिये काफी है कि अब रात को ही सब काम करेंगे। सरकारी दफ्तरों में रात को ही काम-काज होंगे। स्कूलों-कालेजों में रात को ही पढ़ाई होगी दिन में छुट्टी। बसें-ट्रेनों की सवारी रात को ही होगी। रात के बाद ही आवाजाही। दिन में यातायात सड़कों पर बंद। पुलिस दिन भर सोयेगी रात को ही पहरा देगी। लोग भी दिन भर सोयेंगे और रात भर दफ्तरों में कार्य निबटायेंगे। दिन भर कोई काम नहीं होगा। खबर फ्लैश होते ही पूरे देश में हाहाकार मचा है। स्वंयसेवी संस्थायें, महिला संगठन, बुद्धिजीवी, आम लोग, हर नागरिक सब के सब आंदोलित हो उठे हैं। सभी चिंतित, आक्रोशित हैं। प्रकृति के साथ यह खिलवाड़। भला रात भर काम, दिन भर आराम। यह नाजायज है। यह संभव नहीं है। विरोध के स्वर मुखर होते जा रहे हैं। लोग सड़क पर उतर आयें हैं। बसों-रेलों को निशाना बनाया जा रहा है। सरकारी दफ्तर जलाये जा रहे हैं। हर तरफ तोडफ़ोड़, आगजनी।
                            सरकार बार-बार बयान दे रही है। सबको रात भर सुरक्षा की गारंटी। पुलिस रहेगी चप्पे-चप्पे पर तैनात। तमाम आश्वासन। शांति बनाये रखने के लिये अपील हो रही है लेकिन लोग भला कहां मानने वाले। आंदोलन उग्र ही होता जा रहा है। काम-काज ठप। लोग परेशान। खाने के सामान नहीं मिल रहे। लोग भूख से बिलबिलाने लगे हैं। लेकिन सरकार मानने को कुछ भी तैयार नहीं। आदेश है कि रात को काम करना होगा सो करना होगा। इस निर्देश पर सरकार टस से मस नहीं। 
                            थक हार कर कुछ लोग रात को ही काम करने पर राजी होते हैं। पर कुछ लोग अब भी आदेश मानने को तैयार नहीं। यह अन्याय है। तानाशाही है। सत्ता का दुरूपयोग है। विरोध का झंडा थामें कुछ लोग सड़क पर आंदोलन कर रहे हैं। पुलिस पहुंचती है। धीरे-धीरे सब के सब प्रकृति प्रेमी, सच बोलने वाले, झूठ का विरोध करने वाले, न्याय की बात करने वाले, सच्ची बात कहने वाले। सब के सब सूली पर लटकते चले गये। सलाखों के पीछे चले गये। घर परिवार से दूर होते चले गये। कालकोठरी में उनकी जिंदगी, सच बोलती आवाज दम तोड़ती, टूट गयी। शरीर का खून सूख गया। पथरा गयी आंखें। होठ पर ताले जड़ गये। क्योंकि यही सरकारी आदेश है। मानों या कालकोठरी में सड़ते रहो जीवन भर।
                            अब आइये यहां। जहां अभी हम जी रहे हैं। आपसे बतिया रहे हैं। यहां कलयुग का शासन है। यहां के डीएम कलयुग के हैं। सीएम कलयुग के हैं। चमचा-बेलचा, दलाल कलयुग के ही हैं। कलयुग का राज्य चल रहा है। दरबार लगी है। दरबारी, मंत्री, नौकर-चाकर आदेश की प्रतीक्षा में है। दरबार में सन्नाटा पसरा है। तभी  कलयुग आदेश देता है- बलात्कारी बनों। दुराचारी-पाखंडी बनों। भाई का खून करके आओ। संपत्ति के लिये मां-बाप का कत्ल करो। समलैंगिग बनो। दूसरे की जमीन हड़पो। डकैती डालो। घोटाला करो। गरीबों की हकमारी करो। लंपट बनों। लुच्चा बनो। भीख मांगने वाले से वसूली करो। बहन-बेटी को वैश्या बनाओ। लड़कियों की सरेआम आबरू उतार दो। जुबान से हमेशा गाली बको और आवारागर्दी करो। नशे में रहो, नशे में जियो।
                         तो क्या सोचा आपने। कलयुग की बात मानेंगे। मां-बहन से जिस्मफरोशी का धंधा करवायेंगे। चंद टुकड़ों के लिये भाई की हत्या करेंगे। राह चलते लड़कियों की इज्जत से खेलेंगे। करेंगे दलाली, बनेंगे बलात्कारी। डालेंगे डकैती बोलिये। नहीं, नहीं, नहीं। तो सोच लीजिये। अभी भी समय है आपके पास। इन आदेशों को नहीं मानने का मतलब राज्यादेश का उल्लंघन। सत्ता में बैठे कलयुग का अपमान। सत्ता के कानून को तोडऩे की मिलेगी आपको सजा। अब भी वक्त है सोच लीजिये। अगर तब भी आपका जवाब ना ही है तो तैयार हो जाइये। कालकोठरी आपका इंतजार कर रहा है। कालकोठरी यानी आप कष्ट में रहेंगे। आपकी जिंदगी नरक हो जायेगी। दुखी रहेंगे आप। आपका प्रमोशन रुक जायेगा। दफ्तर में कलयुग की बात मानने वाले आपसे आगे बढ़ जायेंगे। आपके बच्चे सरकारी स्कूल में भी आराम से नहीं पढ़ पायेंगे। ईश्वर को आप सुबह-शाम याद करेंगे। पूजा-पाठ करेंगे। फिर भी आपकी तकदीर नहीं बदलेगी। आपकी फरियाद अनसुनी कर दी जायेगी। आप सच बोलते सूली पर हर रोज खुद को कोसते रहेंगे लेकिन ईश्वर भी आपकी नहीं सुनेगा। आपसे वह भी मुख मोड़ लेगा। कारण, कलयुग का शासन चल रहा है। ईश्वर चाह कर भी अपने भक्तों को कुछ दे नहीं सकते। उनकी भी मजबूरी है। यहां कलयुग का शासन चल रहा है। वही सुखी है और रह सकता है जो कलयुग का कहा माने उसका प्रिय पात्र हो। ऐश वही कर रहा है जो कलयुगी है। आप अपने आस-पड़ोस, समाज में नजर दौड़ाइये, खुद को टटोलिये आप कहां हैं? बेहतर जिंदगी चाहते हैं, शान-शौकत चाहिये तो बस एक बार कलयुग का कहा मान लीजिये।

Wednesday, January 12, 2011

लगे रहो विधायक भाई

         पूर्णिया के विधायक केसरी हत्याकांड की गुत्थी सुलझेगी यह सबसे बड़ा सवाल है। जांच सीबीआई के हाथों में है। भाजपा की मुश्किलें भी आसान होती नहीं दिखती। सरगर्मी के बीच वरिष्ठ भाजपा नेतृत्व की छटपटाहट साफ है। राजनाथ सिंह पटना से गये नहीं कि नितिन गडकरी प्रदेश की राजधानी पहुंच गये। आखिर साख, इज्जत का सवाल है तो मौका भी है। बहाना सीएम की माता के निधन पर उनसे अनौपचारिक मुलाकात का लेकिन प्रतिष्ठा पार्टी को दागदार होने से बचाने का। कारण, पहले खुद को नपुंसक कहने वाले विधायक पर यूपी में शिकंजा गहराता जा रहा है। बात बांदा के विधायक पुरुषोतम द्विवेदी की हो रही है। सत्रह साल की लड़की से पहले रेप किया और बाद में खुद को नपुंसक कहने लगे। शर्म की सीमा होती है। सो अब बेशर्मी झेल रहे हैं। सीबीसीआइडी ने द्विवेदी को शीलू निषाद नामक लड़की से रेप करने का आरोपी ठहरा दिया है। अब यही सोच, दहशत भाजपा खेमे में है। कहीं यही हाल केसरी हत्याकांड की भी न हो जाये। जांच चलेगी तो परिणाम तो निकलेगा ही। हालत से चिंतित भाजपा के शीर्ष नेता पटना पहुंच रहे हैं। प्रदेश के उपमुखिया की बात पर हो न हो मुखिया जी ध्यान न दें लेकिन उपमुखिया के परिवार के कोई बुजुर्ग आयें और मुखिया जी उनकी बात न सुनें थोड़ा अटपटा जरूर लगता है। नीयत भी उन अभिभावकों की साफ है। रूपम पाठक की चादर में छुपे उस नस्तर के समान जो केस को किसी की भी पेट में घुसेर दें या फिर आरूषि-हेमराज हत्याकांड की तरह फाइल ही बंद हो जाये। क्योंकि साहब, अब मामला विधायकों की दबंगई का है। सोनबरसा में पूर्व विधायक सीता राम महतो के घर डकैत पहुंच जाते हैं। पुलिस को फोन लगायी जाती है। थाना में रिंग होती है लेकिन पुलिस को सुनाई नहीं पड़ती। आखिर सुशासन की सरकार है। यहां तो क्राइम कंट्रोल में है तो फिर फोन उठाने की जहमत क्यों? सुशासन में सबको बोलने का अधिकार है, छूट है। ऐसे में सोनबरसा सुरक्षित विधान सभा क्षेत्र के महादलित वर्ग के जदयू विधायक रत्नेश सदा का रोब वहां के सरकारी सेवकों को नागवार गुजरे तो हैरानी कैसी। मुसहरवा कह डाला विधायक जी को। बात वहां के डीएम से लेकर प्रदेश के सीएम तक पहुंच गयी। अब कमेटी बनेगी, सच का पता लगाया जायेगा, कार्रवाई होगी?
                           बात साफ है मेरे भाई। अब विधायक जी मुन्ना भाई नहीं चुलबुल पांडेय के किरदार में हैं। लड़की देखी फिसल गये। भले ही इसमें लड़की के बाप की जान क्यों न चली जाये विधायक जी मनमर्जी करेंगे हीं। अब मुंगेर परबत्ता के राजद विधायक हैं अपने सम्राट चौधरी। पिता हार गये चुनाव तो गलती का एहसास भी तो बेचारी जनता ही करेगी। आखिर क्या करते चौधरी साहब दिखा दी थोड़ी सी दबंगई। पिताजी शकुनी चौधरी को वहां की जनता ने नकारा सो वो पिटेंगे हीं।  अवैध रूप से सायरन बजाते लखनपुर के रास्ते में शहीद चौक पर सम्राट बाबू पहुंच गये समर्थकों के साथ और कर दी एक वोटर की जमकर पिटाई। दोनों ओर से कहा-सुनी पुलिस अब सुनती रहे लेकिन फिलहाल चौधरी साहब का कलेजा तो ठंडा हो ही गया है। दरभंगा के नगर विधायक हैं संजय सरावगी। भाजपा कोटे से दोबारा भारी मतों से जीते हैं। ये जनाब भी किसी से कम नहीं। नो इंट्री में गाड़ी घुसा दी। पुलिस वाले ने रोका तो बन गये चुलबुल पांडे।
                          खैर, भाजपा के शीर्ष नेतृत्व की दुविधा लाजिमी है। नेता गुपचुप वहीं कर रहे हैं जिसके लिये वो जाने जाते हैं। पूर्णिया के बैंकों में रूपम के एकाउंट टटोले जा रहे हैं। राशि जमा करने का खेल भला कौन खेल रहा था? अंदरखाने यह बात भाजपा को हजम नहीं हो रही। केसरी के केस में दम तो है। मगर रूपम के बारे में सोचिये। लाल कोठरी में उसकी हालत नाजुक बनी है। बाहर, बेचारी मां बेदम है। 

Tuesday, January 11, 2011

कीर्ति जी आप आजाद है

कीर्ति बड़े क्रिकेटर हैं। क्रिकेट में उनका नाम बहुत दूर तलक है। एक अदद विजेता विश्व कप टीम के सदस्य हैं। क्रिकेट उनकी जिंदगी का हिस्सा है। होना भी चाहिये। उनकी शुरूआत क्रिकेट से है। पर फिलवक्त वो दरभंगा के सांसद हैं। एक बार पहले भी वो यहां का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। यह उनकी दूसरी पारी है। सो, वो क्षेत्र के
विकास के अगुआ हैं। बिजली के बारे में सोचा, केस लड़ रहे हैं लेकिन बिजली की दुर्गति आज भी जनता झेल रही है। खैर इसमें उनका क्या कसूर। वो तो क्रिकेट के लिये बने हैं क्रिकेट के बारे में सोच रहे हैं। इससे पहले भी पहली पारी में उन्होंने क्रिकेट के लिये ही सोचा। यहां के युवा खिलाडिय़ों का चयन कर दिल्ली ले गये प्रशिक्षण देने। अब भला उसमें उनकी क्या गलती कि चयनित खिलाड़ी दिल्ली जाकर मटरगश्ती करने लगे। फिर पता नहीं कहां गये वो खिलाड़ी, कहीं मैदान पर भी दिखाई नहीं पड़े। अब इसमें कीर्ति का क्या दोष? वो तो आज भी क्रिकेट के बारे में ही सोच रहे हैं। लहेरियासराय के पोलो मैदान स्थित नेहरू स्टेडियम में अंतरराष्ट्रीय स्तर के पिच निर्माण में जुटे हैं। आगामी सितम्बर में धोनी, सहवाग और न जाने कितने नामी क्रिकेटर फैंसी मैच के लिये यहां पधारेंगे। आखिर कीर्ति आल बिहार क्रिकेट के अध्यक्ष भी हैं। सो, क्रिकेट प्रेम लाजिमी है। वो नेहरू स्टेडियम में ऐच्छिक कोष से तीन प्रवेश द्वार भी बनायेंगे।
                                  मगर यहां की आम जनता माननीय से कुछ पूछना चाहती है? सुनना-जानना चाहती है? सवाल करना चाहती है? आप पहले क्रिकेटर हैं या सांसद? सांसद पूरे क्षेत्र का सिरमौर एक विकास पुरुष होता है? जिले में तमाम विकासपरक योजनायें रसातल में है? हाल ही में आप ही के मुख से एक दैनिक ने छापा, दरभंगा में सुशासन नहीं दिख रहा? तो भला कौन लायेगा यहां सुशासन? आप के जिम्मे तमाम विकासात्मक योजनायें हैं जो आईने की तरह झलकने, चमकने को बेचैन है? यहां के लोग आपसे ज्यादा की उम्मीद पाले हैं? लेकिन आप भी उसी के पीछे भाग रहे हैं जिसके पीछे देश ही नहीं पूरा विश्व बंधक बनते जा रहा है। खिलाड़ी करोड़ों में बिक रहे हैं। जब खिलाड़ी आम उत्पाद की तरह बिकने लगे तो खेल का क्या भला होगा यह तो आप भी सोच, समझ सकते हैं। आप अपने दौर में तो कभी नहीं बिके लेकिन...? अब जब क्रिकेट का अस्तित्व क्रमात संकट के दौर में पहुंचता दिख रहा है उसका राष्ट्रीय समाधान की दिशा में आप चुप क्यों बैठे हैं? आप क्रिकेट के प्रख्यात कामेंटेटर भी रहे हैं। कई चैनलों पर दिखते रहते हैं कभी दरभंगा के बारे में भी तो कामेंट्री कीजिये। यहां के बारे में देश-विदेश को बताइये? विकास जिससे दरभंगा की माटी अब भी अछूती हो, औद्योगिक प्रागंण सूना पड़ा हो, पेयजल, बिजली के लिये त्राहिमाम हो, देहाती स्कूलों से मास्टर साहब का वास्ता खत्म हो चुका हो, जंगलों के बीच आपके क्षेत्र में स्कूल भवन विराजमान हों जहां पहुंचने से पहले आपके सुशासन के हाकिम को पसीना छूटने लगे, मिड डे मिल बच्चों के बदले शिक्षक व पदाधिकारी चट कर रहे हों, राशन-केरोसिन के बिना गरीबी मुंह बाये खड़ी हो... विकास के लिये आप स्वतंत्र हैं, जहां मन हो खड़ा कर दीजिये विकास... क्रिकेट के बारे में भी सोचना कोई बुरा नहीं है।
                      मगर उसके बारे में कौन सोचेगा जो हमसे, हमारी संस्कृति से हमारे समाज से कट चुका है या कटने के कगार पर है। यहां की प्रतिभायें मंच को लालायित हैं। फुटबाल, कबड्डी में भी आगे बढऩे की हममें हिम्मत, हौंसला है। यहां की बालायें बाक्सिंग में लोहा मनवा चुकी हैं। उन्हें तराशे, संवारेगा कौन? आगे बढ़ाने की महती जवाबदेही कौन संभालेगा?
                  कीर्ति जी आप आजाद हैं। स्वतंत्र हैं कुछ भी सोचने-करने के लिये। आप माहिर हैं, सांत्वना हर खेल को दे रहे हैं। आप वही कर रहे जिससे आपको लग रहा कि दरभंगा का विकास, भला होगा। मिथिलांचल का सिर गर्व से नब्बे डिग्री कोण पर होगा। मुबारक हो आपको। मगर सोचिये ये नाइंसाफी क्यूं ... ?    

Saturday, January 8, 2011

जरा रूपम के बारे में सोचिये

जरा रूपम के बारे में सोचिये

जरा रूपम पाठक के बारे में सोचिये। वो शातिर अपराधी नहीं है। ना ही पेशेवर। वह तो समाज की अगुआ है। उस पथ की सृजनात्मक राही जहां से तालीम की रोशनी समाज में फैलती, चमकती है। तो भला शिक्षा का अलख जगाने वाली रातों रात कातिल कैसे बन गयी। सुशासन की दूसरी पारी जितने वाले मदहोश भ्रष्टाचार के खिलाफ मजबूरन हल्ला बोलने में लगे हैं। ठीक ऐसे में रूपम के रूप में एक सफेद, भयावह सच भला सदा सच और जनता की सेवा का लबादा ओढ़े नेताओं को कैसे हजम हो सकता है। ऐसे में रात की स्याह सिसकती चूडिय़ों को फोडऩे वालों की काली करतूत को पर्दाफाश करने वाली रूपम को भला कौन न्याय दिलाने की सोचेगा। रूपम तो समाज की वह रूप है जिसमें महिला सशक्तीकरण का समर्थन भी है और उसे नये हथियार से लैस करने की कोशिश भी। रूपम उस दागदार व्यवस्था के खिलाफ साक्षात् दुर्गा स्वरूपा है जिसके भीतर ना जाने कितनी रूपम दबी, शोषित व प्रताडि़त हर दिन हो रही है। गांधी टोपी वालों की गर्म बिस्तरों पर सिसकती कितनी रूपम है जो आज तक हथियार नहीं उठा पायी।
                      जरा रूपम की विवशता के बारे में सोचिये। सरकार सुशासन की। लाल टोपी सुशासन की। डंडा सुशासन के पास। मीडिया सुशासन के पास। मरने वाले नेता सुशासन के। जी रहे नेता सुशासन के। हर दिन बयान देने वाले, बोलने वाले, रूपम को कंलकित,तार-तार करने वाले उसके परिवार को धमकाने वाले, उसे परिजनों से नहीं मिलने देने वाले सुशासन के। यहां तक, राज्य महिला आयोग सुशासन क ी। काल कोठरी की दीवारें सुशासन की। मुंसिफ के नाम पर सुशासन के साथी ही। न्याय करेगा कौन? हक में फैसला देगा कौन? कौन देगा रूपम के भीतर के स्वर को आकार। किसकी चलेगी इस दबंगई के सामने। ससुर भ्रष्ट तंत्र के साथ है। व्यवस्था के आगे नतमस्तक। एकमां है बेचारी। इंसाफ के लिये आवाज तो उठा रही लेकिन उस पीडि़त मां के साथ कोई भी खड़ा नहीं दिखता। कहां तक इस तंत्र से जूझेगी। वकालत के काला कोट पहनने वाले भी नहीं मिल रहे थे जो न्यायपालिका से उम्मीद की भीख भी मांग सके। कसाब के लिये काला कोट आसानी से खड़ा मिलता है लेकिन रूपम के लिये...। शोषण के किस मानसिक दुराचार को वो झेलती रही, कभी किसी ने सोचा। वो पेशेवर अपराधी नहीं है कि एक झटके से किसी का सिर कलम कर दे। वह तो व्यवस्था की सड़ती कुव्यवस्था से आजिज होकर वार कर देती है और महज संयोग मानिये कि पूर्णिया के विधायक राजकिशोर केशरी की उस हादसे में मौत हो जाती है। समाज में आज भी जनप्रतिनिधि आदर के पात्र हैं। यहां तक कि समाज के बीच का ही आदमी मुखिया बन जाता है तो वो मुखिया जी हो जाता है तो भला केशरी तो विधायक थे और उस रूपम के विद्यालय में आ चुके थे जहां वह नित्य शिक्षा की पूजा करती थी। तो भला ये अचानक विभत्सता कहां से आ गयी।
                रूपम आज अकेली है। हम समाज के बीच हैं जहां न्याय और अन्याय हमारे सामने साक्षात्कार कर रहा है। जरूरत है समाज को रूपम जैसी आइकान की। असुरक्षित हो रही बहू-बेटियों को ऐसे कामुक नेताओं व धर्मगुरुओं से बचाने की जो महिलाओं को एक जिस्म समझने की धोखा कर रहे हैं। रूपम उन सबके लिये एक सबक है। मगर बड़ा सवाल कि सरकार के सबसे बड़े सिपहसलार सीबीआई से जांच को क्यों मुकर रहे? सबसे बड़े मुखिया चुप्पी साधे बैठे हैं? सरकार के प्रमुख अभिभावक होने के कारण उन्होंने कभी अपने कनिष्ठ से पूछने की कोशिश नहीं कि आखिर विधायक हत्याकांड की सीबीआई जांच क्यों नहीं? शायद इसलिये कि केसरी कनिष्ठ के खाते के विधायक रहे हैं और सच का सामना करने में पार्टी को घबराहट हो रही है कि कहीं बात निकली तो दूर तलक न चली जाये...।  

Friday, January 7, 2011

तू भी तो एक मशीन है...

मशीनें हैं तुम्हारे घर में
गोया, टीवी, फ्रिज, वाशिंग मशीन...
हां है तो ...?
क्या कभी उसने
तेरा हाल-चाल पूछा ?
पूछा है कभी ...
 तू कैसा है...
घर का क्या हाल है...
बच्चे कैसे हैं
वेतन मिला कि नहीं
बोनस मिलेगा
क्या नया खरीद रहे हो नये साल पर
क्या खाया आज ...
कहां घूमने गये थे...
थ्री इडियट देखी...तीस मार खां देखने चलोगे
छोटकू तो अब बड़ा हो गया होगा
शैतानी भी करता होगा
भाभी जी कैसी हैं
पूछा कभी ? 
पूर्णिया के भाजपा विधायक
की हत्या में बेचारी रूपम पाठक पर क्या बीत रही होगी
आखिर यूं ही कोई किसी को नहीं मारता
हत्या तक करने की यूं ही नहीं सोचता, यूं कोई 
बेवफा भी नहीं होता
पूछा कभी उसने
विधायक हत्याकांड की सीबीआई जांच होगी तो नतीजा
आरूषि हत्याकांड वाला ही होगा कि निष्पक्ष परिणाम भी निकलेगा
राज्य सरकार जो सत्ता मद में चूर है
वहां की जांच एजेंसी कुछ कर पायेगी
एक पत्रकार को गिरफ्तार कर लिया
अब उसकी पत्नी की बात सुनो वो क्या कह रही है
क्या पचा पाओगे उसकी बात...।
अरे मेरे भाई
इलाहाबाद के पास टीटीई ने चलती ट्रेन से बिहार के एक दंपती को नीचे फेंक दिया।
पति की मौत हो गयी।
कभी तुमने विचारा हम कहां जा रहे हैं।
चंपारण में एक आयुर्वेदाचार्य ब्रजेश्वर मिश्र ने एडस की दवा खोजने  का दावा कर लिया है।
प्याज के दाम इतने क्यों भाग रहे हैं।
पूछा कभी मशीन ने
नहीं ना ...
तो फिर मुझसे क्यों कहते हो
मैं फोन नहीं करता, तुम्हारा हाल चाल नहीं लेता। नहीं करता तुमसे कोई बात।
ऐसा नहीं है कि मेरे मोबाइल में पैसे नहीं हैं...
मिस्ड काल तो मार ही सकता हूं
फिर भी मैं ऐसा नहीं करता।
तुम समझदार हो,समझते हो,समझ चुके हो।
 मैं तो मशीन हूं...।
मुझसे ऐसी उम्मीद आगे मत करना,क्योंकि मैं मानव रूपी शरीर में जिंदा तो हूं पर हूं एक मशीन,जो दिन भर,सुबह से रात तक आन रहता हूं,जिस मालिक का नमक खाता हूं उसके लिये सेवा
त्याग, समर्पण का प्रतीक हूं क्योंकि मैं
आदमी की शक्ल में एक मशीन हूं...।

हाऊस वाइफ का बदलता क्लचर

हाऊस वाइफ का बदलता क्लचर
पहले पढ़े-लिखे लोग या सभ्य, सुसंस्कृत परिवारों में हाऊस वाइफ को ही पसंद करते थे। घर पर बीवी पति का घंटों अकेले इंतजार करती दिख जाती थी। संयुक्त परिवारों में तो घरेलू हाऊस वाइफ को ही तरजीह मिलती रही है। अब हाऊस वाइफ कंसेप्ट थोड़ा बदलता दिख रहा है। शिक्षित परिवारों की बातं तो दूर अल्प विकसित परिवारों में भी काम-
काजी महिलायें ही तरजीह पा रही हैं। पति-पत्नी दोनों काम पर और बच्चे किसी रिश्तेदार के सहारे या फिर हास्टल व अन्य जगहों पर। यही वजह है कि प्ले विद्यालय बड़े शहरों से चलकर छोटे शहरों में खुलेआम हर गली में मिलने लगे हैं। लेकिन समय मानता नहीं। आप जितनी दूर सोच से आगे बढ़ेंगे समय वहां अगुआ बन पहले से मुस्तैद दिखेगा। ऐसे में सामाजिक परिवर्तन के स्याह चेहरे सामने आ रहे हैं। पत्नी काम पर और पति रसोई, घर में। चूल्हा संभालने से बच्चों को विद्यालय छोडऩे तक। सब बेचारा हाऊस वाइफ बन संभाल रहा है हमारा चंगू। हमारे मोहल्ले में लोग उसे चंगू के नाम से ही पुकारते तो नहीं लेकिन आपस में जब भी उसकी बात होती है तो इसी नाम से बात जरूर करते हैं। चंगू उदास है। रहमगंज मोहल्ले में एक भाड़े के मकान में रहता है हमारा चंगू। उसकी पत्नी सरकारी अस्पताल में नर्स है। सरकारी पार्ट टाइम नर्स। सो पैसे के लाले तो रहेंगे ही। आठ महीने से तनख्वाह नहीं मिली है। दो बच्चे हैं-नीलू व सोनू। दोनों निजी इंग्लिश विद्यालय में पढ़ते हैं। ऊपर से मकान का किराया अलग। खाना-पीना वगैरह-वगैरह। लिहाजा सुनीता ने प्राइवेट नर्सिंग होम भी ज्वाइंन कर लिया है। अब बेचारा चंगू वैसे उसका नाम रामाशंकर है पर काम
का बोझ ज्यादा बढ़ गया है। सुबह सबेरे छह बजे बच्चों को विद्यालय पहुंचाना वो भी पैदल करीब तीन किमी । फिर घर लौटकर बत्र्तन धोना, घर की सफाई व कपड़ा धोना अलग से। पत्नी को चाय गर्म के साथ सरकारी अस्पताल ले जाने के लिये नाश्ता बनाना। नाश्ता के बाद फिर घर के बाकी कामों के साथ ही खाना तैयार करते-करते बज गया एक। फिर विद्यालय का समय। डेढ़ बजे बच्चों की छुट्टी से पहले
 चंगू हाजिर है विद्यालय के मेन गेट पर। बच्चे विद्यालय से लौट गये हैं। घर में हो-हल्ला को शांत रखना भी तो चंगू के जिम्मे है सो बेचारा खाना लगाकर बच्चों को मन्नतें कर रहा है आकर खा लो। नीलू तो शांत भी है खा लेती है लेकिन सोनू की बदमाशी चल रही है। इसी सब में बज गया तीन। पत्नी लौटती है थकी हारी अस्पताल से। बेचारा चंगू पानी लेकर हाजिर है लो पी लो...। खाना गरम हो रहा है। खाने खाते कब चार बज गये पता ही नहीं चला। सुनीता प्राइवेट अस्पताल के लिये कपड़े चेंज कर निकल पड़ती है। पांच बजे शाम से वहां रात ग्यारह बजे तक वहीं डयूटी है। अब सुनीता रात को ग्यारह बजे वहां से अकेली लौटेगी कैसे...। आटो कभी मिलता कभी नहीं भी। चंगू साइकिल से घर से विदा होता है करीब दस बजे। घर पर खाना खिलाकर बच्चों को सुला चुका है। प्राइवेट नर्सिंग में सीरियस मरीज के आ जाने से सुनीता को कुछ देर है सो बेचारा चंगू वहीं बाहर इंतजार कर रहा है। सुनीता निकलती है रास्ते में कोई आटो नहीं सो चंगू ही साइकिल पर बिठा कर पत्नी को घर लाता है। 
दूसरा सीन :
सुनीता मोहल्ले की अन्य महिलाओं से बातें कर रही हैं। क्या करें। सरकारी में तो यही है। पैसा टाइम पर मिलता ही नहीं सो प्राइवेट ज्वाइंन कर लिया। वैसे है ही बहुत दूर। मनीषा भी वहां डयूटी करने में तैयार नहीं हुई। वो भी रहती तो दोनों साथ जाते अकेले बहुत परेशानी है। कई बार मनीषा से कहा अरे सरकारी में पैसा नहीं है तू मेरे साथ यहां च्वाइंन कर ले पर तैयार नहीं हुई। अब नीलू के पापा को भी इसी वजह से यहां रखे हैं घर-रसोई देखना है। बच्चे छोटे हैं। सबको खाना भी तो टाइम पर मिले। 

दृश्य तीन देखिये
बेचारा चंगू। हर समय चेहरे पर एक ही भाव। न खुशी ना गम। आज नीलू का बर्थ डे है। पत्नी के आदेश पर वह सब्जी से लेकर अन्य सामान सुबह से ही जुटा रहा है। शाम को एक बड़ा सा कोट , जूता व पेंट पहनकर हाथ में झोला लिये वो चला जा रहा है निर्विकार बाजार की ओर। लोग बगल से गुजर भी जा रहे हैं लेकिन चंगू की गर्दन नब्बे डिग्री पर ही है। आखिर हाऊस वाइफ जो ठहरा बेचारा- चंगू...।