Friday, May 20, 2011

बादल का जाना


बादल का जाना

पोस्टेड ओन: May,16 2011 जनरल डब्बा में
नाट्याकाश से बादल का जाना स्तब्धकारी है। निसंदेह बादल नाटक के सरकार के मानिंद थे। बादल सरकार नहीं रहे लेकिन उनकी सोच, मंशा हमारे बीच कई यक्ष प्रश्न के साथ रंगमंच की ओर निहार रहे हैं। पूरे देश में सिनेमाई संस्कृति ने जिस तरीके नाट्य विधा को हाशिये पर धकेलने, अलग दिशा में बहाने, मोडऩे की कोशिश की है। रंगमंच को जिस हिकारत की नजर से देखा जाने लगा है। बड़े शहरों को छोड़, निम्न व छोटे शहरों खासकर हिंदी क्षेत्रों में नाटक करते लोग गुम हो गये हैं। इसमें एक ठहराव आ गया है। एक दशक पूर्व तक जिस निर्वाध गति से रंगकर्म के उभार ने जोर पकड़ा। जगह-जगह मंचीय व समान्तर प्रस्तुति कर नाट्यकर्मियों ने निम्न से उच्चस्तरीय दर्शक तंत्र को विकसित, संगठित और तैयार किया वह एप्रोच अचानक कहीं गायब है। इतने अर्से में प्रस्तुति, अभिनय, संप्रेषण, निर्देशन हर स्तर पर शिथिल सा पड़ चुका है। इसमें विकास की गुंजाइश नहीं दिख रही है। युवा वर्गो का उत्साह ठंडा पड़ चुका है। जो कदम पहले रंगकर्म की ओर अगुआ होते थे वे टेलीवुड की ओर बढ़ रहे हैं। इसका खामियाजा एक सार्थक दर्शक तंत्र नहीं बना सकने से रंगकर्म को हुआ है। एक समय नाट्यकर्मी दर्शक से सीधे संवाद को आतुर थे। हर वर्ग के दर्शकों में इनकी पैठ थी, तारतम्य, लय, स्फूर्त और प्रतिबद्धता से एक दर्शक वर्ग खड़ा कर दर्शकों को नाटकों की बारीकियों से साक्षात्कार करा एक माहौल खड़ा करने की कोशिश भी हुई थी पर वह वर्ग लुप्तप्राय: हो गया है। भारतीय रंगमंच के इतिहास पुरुष बादल सरकार के अचानक जाने के बाद कई मौन शब्द आकार ले रहे हैं। कलाकार, संस्कृतिकर्मी, रंगकर्मी आज कहां खड़े हैं। उनका वजूद, स्वरूप, समाजशास्त्र व परिभाषा क्या है। रंगकर्मी वर्तमान में कहां किस तरफ खड़े हैं। उनकी क्या पोजिशन है। यह सोचना हर रंगकर्मी के लिये लाजिमी और यर्थाथपरक हो गया है क्योंकि उनकी सेहत पर सांगठनिक छिन्नभिन्नता, प्रशासनिक, सामाजिक और आर्थिक पाबंदी ने उन्हें ऐसे मुकाम पर ला पहुंचाया है जहां से खुद अपना विकास करने के लिये उन्हे एकजुट होकर तैयार रहना होगा खासकर यूज एंड थ्रो से बचना होगा। बादल के जाते ही एक नाम जेहन को झकझोर गया वह था- सफदर। सफदर हाशमी की शहादत के करीब 22 बरस बाद आज फिर यह समीचीन हो गया कि बादल की तरह सफदर भी क्या चाहते, सोचते थे। दोनों की चाहत, अभिव्यक्ति, मंशा, नुक्कड़ के प्रति समर्पण इन दोनों की मौत के बाद ही हल्ला-बोलकर रह गयी। संगीत नाटक अकाडमी से सम्मानित बादल सरकार ने जिस तरीके से पद्म भूषण लेने से इनकार कर दिया ठीक वैसे ही सफदर के नाम पर जैसा ताना-बाना सहमत की स्थापना कर बुना गया वह सफदर व जन नाट्य मंच की शैली व रंगकर्म से सर्वथा प्रतिकूल या यूं कहे कि जिस सफदर को एक सांस्कृतिक औजार के रूप में नुक्कड़ नाट्य रंगकर्म के कथ्य व शिल्प का अगुआ माना जा रहा था उस तंत्र को उनकी मौत के बाद आधुनिक तामझाम व उपभोक्तावादी संस्कृति का चोला डालकर बाजारवाद में परोस दिया गया। शायद उस फासीवादी ताकतों से भी घिनौने रूप में जिसने सफदर की खून से नुक्कड़ नाट्यकर्म को अपवित्र कर दिया था। खुद फासीवादी तो सफदर की मौत को तमाशा मान दो दशक से जश्न में डूबे रहे लेकिन उनकी मौत या शहादत की सार्थकता को कुछेक नाट्यकर्मियों की सोच ने जरूर गंदा कर दिया। फूहड़ व अश्लील कार्यक्रम सफदर व उनकी अशांत वैचारिक आत्मा को आज भी कचोटती होगी लेकिन इस वनवास ने अंतत: सफदर के नाम पर रोटी सेंकने वालों का क्या हश्र किया और क्या सांस्कृतिक फजीहत की वह सबके सामने है। आज बादल का जुलूस कहीं नुक्कड़ों पर निकलता नहीं दिखता। रंगमंच की परंपरा से हटकर नया आयाम देने वाले और समकालीन रंगमंच को उठाव देकर प्लेटफार्म तैयार करने वाले नामचीन हस्ती, विशिष्ट, वरिष्ठ, संस्कृतिकर्मी, अभिनेता, निदेशक, लेखक बादल के निधन की खबर को कोने में समेट देना निसंदेह उस विधा के खिलाफ साजिश सरीके है जिसे बादल ने लंबे समय तक जिया। कहीं कोई पूरे देश में श्रद्धा सुमन देने वाले नहीं दिखे। राजनीति की रोटी खाने वालों ने ठीक उसी दिन जिस दिन बादल ने अंतिम सांसे ली किसान नेता महेंद्र सिंह टिकैत की मौत पर आंसू बहाते दिखे लेकिन बादल के लिये एक शब्द किसी के पास नहीं था। जो शख्स हमेशा गरीबी, आतंकवाद, भूख, भ्रष्टाचार और बेरोजगारी के खिलाफ लड़ा, अभिव्यक्ति की धारदार विधा को जड़ मूल से उखाड़ फेंकने के लिये व्यवस्था का बर्बर कुल्लाड़ झेला उसके प्रति हमारी यह संकीर्ण सोच सोचनीय है। जरूर है पुलिस, नेता, पूंजीपति मौजूदा व्यवस्था मुनाफा व लूट को बेनकाब कर सीधे जनता तक पहुंचाने की जिसके बिना रंगकर्म को जिंदा रखना मुमकिन नहीं।
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abhay के द्वारा
May 18, 2011
बादल को आप ने बढ़िया श्रधासुमन अर्पित किया है बहुत बढ़िया आलेख
    manoranjan thakur के द्वारा
    May 19, 2011
    सुंदर प्रतिक्रिया
anuj के द्वारा
May 18, 2011
बहुत बढ़िया
    manoranjan thakur के द्वारा
    May 19, 2011
    thank you anujji
shakti के द्वारा
May 18, 2011
बहुत अच्छा लेख है आपका.
    manoranjan thakur के द्वारा
    May 19, 2011
    aap ne saraha shaki mili

अमर सिंह का पालिटिक्स आफ लव


अमर सिंह का पालिटिक्स आफ लव

पोस्टेड ओन: May,12 2011 जनरल डब्बा में
बूढ़ा होगा तेरा बाप। अभी तो नेताजी जवान हैं। राजनेताओं के चरित्र को संक्षेपण में उजागर कर रहे हैं। पायजामा उतारने के शौकीन नेताजी की बहुत जल्द ए सार्टिफिकेट फिल्म रिलीज होने वाली है। पहले बेचारे समाजवादी थे। अब सेंसर बोर्ड को बात-बात पर कैची चलाने से रोक रहे हैं। पांच सालों तक यानी 27 फरवरी 2006 से सुप्रीम कोर्ट को ठगा। अब देश में मसाला बेच रहे हैं। कभी दो-दो जया को आजू-बाजू रखते थे बिल्कुल गांधी स्टाइल में। दो-दो शिफ्टों में शूटिंग के आदी अपने नेता जी का जब प्रदा व बच्चन से मन भर गया तो उठा लाये बिपाशा को पायजामा उतार के। भला आप जैसे होनहार, हैंडसम समाजवादी के भरोसे ही तो ये फिल्मी बालायें भी सिंगल जिंदगी जीती है और आप हैं कि खुद को बूढ़ा कह रहे हैं। बुरा मत मानियेगा। आप चिंतित कतई न हों। चरित्रवान, देशभक्त नेताओं के लिये ही तो दवा कंपनियां दिन-रात मेहनत कर रही हैं। अंग लंबा, मोटा करने वाला जापानी आटोमेटिक यंत्र आपके लिये तैयार है। अगर आपका अंग छोटा, पतला, टेढ़ा हो गया होगा हो तो निराश होने की आपको जरूरत नहीं। अंग को मनचाहा, लंबा, मोटा, कड़क, सुडौल बनाकर आप बिपाशा को 50 से 60 मिनट अतिरिक्त टाइम दे सकते हैं। चमत्कारी 30 दिनों की दवा के साथ जोशीला स्प्रे,मस्ती आयल, डीवीडी, उत्तेजना कैप्सूल, 4जीवी मेमोरी कार्ड भी फ्री में मिलेगा। आप समाजवादी ठहरे। फ्री में खाने की तो आपकी पुरानी आदत है ही सो सुबह-शाम गरम दूध के साथ लेकर देखिये। अब लादेन जब बीमार रहते भी पांच बीवियों को वियाग्रा खाकर शांत रख सकता था तो फिलहाल आपके पास तो सिर्फ बिपाशा ही है। उस बेचारी का क्या कसूर कि आप एक माह से उससे मिले नहीं हैं। जॉन को छोड़कर वो आपके लिये इश्किया बनी हुई है। कम से कम बिल्लो रानी का तो ख्याल रखिये। वैसे भी आपके लिये वो डाक्टरों से बात कर रही है। उसने आपको टेलीफोन पर बताया ही था कि वो डाक्टर आपको दो इंजेक्शन और कुछ फल खाने की सलाह देंगे। आधे घंटे के इलाज में प्लैटलेट से परिपूर्ण प्लाजमा व सूअर के मूत्राशय से तैयार इंजेक्शन आपके गंजेपन का हल कर देंगे और दूसरी एक गर्भनिरोधक सूई देंगे। आपके लिये डाक्टरों ने माइटोकोंड्रिया प्रोटीन का भी पता लगा लिया है जिससे आपकी जवानी के जीवनकाल को बढ़ाया जायेगा। फिर आपको तरबूज खाने की सलाह दी जायेगी। फिलहाल पूरे अमेरिका में तरबूज की घूम मची है। यह आपके यौन क्षमता में कमी, इरेक्शन की समस्या को दूर करेगा। बिपाशा तो पहले ही कह चुकी है कि उम्र से कोई फर्क नहीं पड़ता लेकिन आपने ही कह दिया था, पड़ता है। दोनों टांगों के बीच फर्क पड़ता है। सो, तब से परेशान थी बेचारी। लेकिन अब आप बिपाशा से कह पायेंगे कि बूढ़े शख्स को, बुढ़ऊ को तुम्हारी जरूरत है। वैसे मल्लिका शेरावत को अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा ने चाय पर बुलाकर पालिटिक्स आफ लव पर खूब चर्चा की है लेकिन उसका मन वहां नहीं लगा। मल्लिका आपका इंतजार कांस में कर रही है। वहां वह आपका जबर्दस्त खैर मकदम करने की तैयारी में है। अमर सिंह जी, बेहतर होगा कांस फिल्म समारोह में विशिष्ट अतिथि बन कर आप भारतीय राजनेताओं का वहां प्रतिनिधित्व करें। वहां हसीनाएं ही हसीनाएं मिलेंगी। रानी है, अपनी सोनम है। ऐश्वर्या रेड कार्पेट पर मिलेंगी। मल्लिका वहां आपके हाथों ही पालिटिक्स आफ लव का प्रोमो करायेगी। वैसे भी आपने कह ही दिया है कि आप सीडी के पापा नहीं हैं। अरे पिता-पुत्र ये शांति व प्रशांत भूषण की बातों का आप बुरा मान गये। इस परिवार को तो बोलने की बीमारी है। सो, आपके बारे में भी अपमानजनक बातें, टिप्पणी कर दी। भला आप जैसे सज्जन को भी इन दोनों ने नहीं छोड़ा। खैर छोडिय़े, जाने दीजिये। आपने देश की वर्षो सेवा की है। आप एनडी तिवारी थोड़े न हैं कि एक साथ बिस्तर पर तीन-तीन बालाओं के साथ रासलीला करें और बाद में डीएनए टेस्ट करने से भी इनकार करने लगे। देखिये ना, आपके लिये पहले से ही बिल्लो रानी ने सूई तैयार कर रखी है। आपको कभी भी डीएनए कराने की नौबत ही नहीं आने दी जायेगी। आप समाजवादी हैं। आपकी चिंता करना हर भारतीयों का कर्तव्य है। जब समाज की चिंता आपको खाये जा रही है। जवानी से लेकर बुढ़ऊ होने तक पायजामा उतार कर आपने देश की सेवा की है तो भला इन बालाओं को तो आपकी सेवा करनी ही चाहिये। सो, प्लीज जल्द मिल लीजिये बिपाशा से। इधर, सुप्रीम कोर्ट ने जो कहा है कि आपने न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग किया व कोर्ट का समय बर्बाद कर उसे धोखे से टेपों को सार्वजनिक करने से स्टे ले लिया उसके लिये लगाते हैं हम कोई तिकड़म दोनों टांगों के बीच से पायजामा उतार के।
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abhay के द्वारा
May 18, 2011
really amar singh deserve worst
abhijeet kumar के द्वारा
May 16, 2011
इस लेख पर मै तो ज्यादा कुछ कोमेंट नहीं करूँगा,लेकिन मजा आगया !
    manoranjan thakur के द्वारा
    May 17, 2011
    thank you abhijeetji
Rajesh Thakur के द्वारा
May 15, 2011
really a very stimulating article related to Amar Singh, thanks for giving such a shameful detail about a notorious leader ,kudoes to you and keep writing. Waiting for your new comments.
Thank you.
    manoranjan thakur के द्वारा
    May 16, 2011
    बहुत ही सुंदर प्रतिक्रिया के लिय बहुत बधाई
shailandra singh के द्वारा
May 13, 2011
मनोरंजन जी
सादर अभिवादन
बदिया लिखा काश यह राज नेता अपने ऊपर कंट्रोल करके चलते? फिर अमरसिंह ही क्यों और भी नेता है जिनकी जिन्दगी इस तरह की रंगीन महफ़िलो से सजती है मीडिया और राजनेता दुसरो पर कीचड उछाल कर अपना उल्लू सीधा कर रहे है पर हकीकत यही है की इन राजनेताओ और अधिकारिओ का चरित्र नहीं रह गया है शुर और शुरा में पूरा देश डूवा है जो काम कही भी ना होता हो वह इन चीजों से हो जाता है और कोर्पोराते जगत इसका फायदा उठा रहा है फिर भी गलत तो गलत ही है. बदिया कटाक्ष किया है बधाई हो.
    manoranjan thakur के द्वारा
    May 16, 2011
    श्री शलेन्द्र भाई सुंदर प्रतिक्रिया के लिय बहुत बधाई
ashvinikumar के द्वारा
May 13, 2011
मनोरंजन जी,, बहुत भयानक खिंचाई की है आपने पायजामा उतारके अमरसिह की तो चड्डी भी उतर गई है अब बेचारे के पास कुछ नही बचा उतारने को ,,नंगा नहायेगा क्या निचोडेगा क्या ,,बड़े बेआबरू हो के हर कूचे से ये निकले ,………………जय भारत
    manoranjan thakur के द्वारा
    May 13, 2011
    श्री अश्विंजी बहुत ही सुंदर टिप्पणी दी है सही कहा नंगा नहायेगा क्या निचोडेगा क्या बहुत धन्यवाद
    manoranjan thakur के द्वारा
    May 16, 2011
    श्री शलेन्द्र भाई thanks a lot
anuj के द्वारा
May 12, 2011
समाजवादी की आपने पोल खोल दी.
    manoranjan thakur के द्वारा
    May 13, 2011
    thanks anujji
rajat के द्वारा
May 12, 2011
बहुत ही सही कहानी लिखी है अमर सिंह की
बधाई
    manoranjan thakur के द्वारा
    May 13, 2011
    lot of thanks