Monday, February 28, 2011

बाकी हम पर छोड़ दीजिये

आलू-प्याज के भाव। आटे की कमरतोड़ कीमत। चावल की क्वालिटी, दाल मंूग की या अरहर की। नमक टाटा या शक्ति भोग। रिफाइंड में धारा या हाथी। पत्नी की जेब में कितना डालेंगे। बच्चों की क्या-क्या फरमाइश पूरी करेंगे। कितनी बार लगायेंगे सिनेमा घरों का चक्कर। होटल में लंच का प्रोग्राम है। इस महीने क्या-क्या नया लेने की सोच रहे। पूरे घर की बजट को हाईटेक बना डालिये। कहीं दूर जाने की जरूरत नहीं। हमारे पास अनुभवी बजट एक्सपर्ट मौजूद हैं जो आपको रखेंगे हमेशा आगे बिल्कुल रूपा फ्रंट लाइन की तरह। सिर्फ आप रजिस्ट्रेशन करवाइये। बजट एंड बजट कंपनी में जो बिल्कुल वातानुकूलित है और बदले में फुर्सत में रहिये अगले रिचार्ज करवाने तक। हर महीने रिचार्ज की सुविधा। लाइफ टाइम की भी सुविधा है हमारे पास। पूछ सकते हैं हमारे कस्टमर केयर से या फिर हमें एसएमएस कर सकते हैं। आपकी सेवा के लिये हम फोन लाइन पर भी मौजूद हैं। लेते रहिये पूरी जानकारी या हमारे वेबसाइट पर आइये। हमें लिख भेजिये आप पूरा पता और अपना फोन नम्बर या फिर ईमेल कीजिये। ताकि आपका पारिवारिक बजट बन सके खुशगवार, रंगीन। आप रह सकें महीने भर चैन से। अगर आपकी सैलरी कम है तब भी आप रोज खा सकते हैं मुर्गा पराठा। शाकाहारी हैं तो हमें अलग से लिखें। आपके बजट में हम शामिल करेंगे हर दिन एक स्पेशल डिश। अगर आप इनकम टैक्स के झमेले में हैें और आपकी तनख्वाह ज्यादा है तो आपके लिये हमारे पास ढेर सारे विकल्प खुले हैं। बस हमें लान आन कीजिये, लिखिये या मिलिये। आप समाजवादी हों, राष्ट्रवादी हों, भगवावादी हों या कांग्रेसी। वामपंथियों के लिये विशेष छूट, आफर है हमारे पास। बस फार्म में पता सही लिखिये। साथ ही आपके पिताजी जिंदा हैं या स्वर्गवासी हो गये। जिंदा हैं तो किस वाद से विलोंग करते हैं और मर गये तो किस वाद के नाम पर मेंसन करना मत भूलियेगा। हमारे पास एक्सपर्ट चैनल में सबसे ऊपर हैं मि.लालू, साथ में रहेंगे चिदंबरम, सुषमा जी बजट तैयार करेंगी और आप तक बजट पहुंचायेंगे हमारे प्रायोजक स्विस बैंक। माल डालिये और भूल जाइये। आपका हाथ स्विस बैंक के साथ। भरोसे का बैंक। समृद्धि आपकी, गारंटी हमारी। हमारे विशेषज्ञ बतायेंगे तिकड़म। हाईटेक बजट सिर्फ आपके लिये, आपके पूरे परिवार के लिये। हर एक चीजों पर रहेगी हमारी नजर। दूधवाला, अखबारवाला, किराना स्टोर्स, केबल वाला, मोबाइल वाउचर, पानवाला, सिगरेट, पेट्रोल, बिजली वाला, रिक्शावाला, झाड़ू पोछा वाला, दर्जी भाई, लांडरी वाले, सब से आराम से फुर्सत पाइये। हमारे पास सब कुछ फ्रेेंचाइजी में उपलब्ध है। पूरा डिपार्टमेंटल स्टोर्स जिसमें आपको मिलेगा झाड़ू मारने वाला से लेकर चाय बनाने वाला तक। मसाज करने वाला से लेकर बर्तन धोने वाला तक। क्या चाहिये आपको फौरन हाजिर। फोन मिलाइये माल तैयार। पूरा डिपार्ट ही है हमारे स्टोर्स में। इसकी मास्टर माइंड हैं बड़ी मैडम जो इटली से आयीं हैं विशेष प्रशिक्षण लेकर सिर्फ आपके लिये आपके पूरे परिवार के लिये। इनसे लालू व चिदंबरम भी बीच-बीच में टिटोरियल लेते हैं। इस स्टोर्स के सदस्य बनिये। पूरे देश में हमारी शाखा है। सस्ता व कामचलाऊ सोनिया डिपार्टमेंटल स्टोर्स। हर शहर की शान आपकी आन। टेंशन को कहिये बाय-बाय। गृहिणी को आराम। बस हमारा कोड लाग आन कीजिये। बाकी हम पर छोड़ दीजिये। हां, अपनी सैलरी विस्तार से लिखना मत भूलियेगा। तो शुरू हो जाइये आज से। मस्त दिन की सुहानी शुरूआत सोनिया डिपार्टमेंटल स्टोर्स के साथ।
क्या बात है शर्मा जी। ऐसे गोल गप्पे हो रहे हो जैसे लाटरी लग गयी। अमा यार, अब मैं बजट एंड बजट कंपनी मार्का सोनिया डिपार्टमेंटल स्टोर्स से रजिस्ट्रर्ड हो गया अब नो फिकर। कोई चिक-चिक नहीं। नो टेंशन एट आल। लेकिन शर्मा जी सुना है कंपनी व स्टोर्स दोनों स्विस बैंक के काले धन से एक चिट फ्रंड टाइप। एक ही दिन सबकुछ समेट कर इटली रवाना हो जायेंगे फिर कराते रहना रिचार्ज। अरे शर्मा जी खोजते रह जाओगे सोनिया डिपार्टमेंटल और बचत एंड बचत कंपनी।
मि.पलटू को शर्मा और वर्मा जी की बातों में एंगल दिख गया। पहुंच गये पूरी टीम के साथ। हां तो शर्मा जी क्या प्रतिक्रिया है आपकी हाईटेक बजट पर। देखिये मि.पलटू ये कंपनी तो पलटने वाली है नहीं। अगर पलट भी गयी तो चुनाव होगा। इसमें जितने खाताधारी बन गये हैं सोनिया डिपार्टमेंटल स्टोर्स के उसी से महारानी का महो-महो है। सुना है शर्मा जी बजट में कुछ गड़बड़झाला है। देखिये मि.पलटू ओबामा के आने से पूरा बजट असंतुलित हो गया है। करोड़ों बेवजह पानी में बह गये। अच्छा शर्मा जी आप हमारे साथ बने रहिये अभी लाइन से जुड़ गये हैं वर्मा जी। हां तो वर्मा जी। देखिये मि.पलटू मैं मिसेज वर्मा बोल रही हूं। वर्मा जी की हालत अचानक बिगड़ गयी है। जैसा आप टीवी पर देख रहे हैं वर्माजी सोफा पर औंधे मुंह लेटे हैं। मिसेज वर्मा उन्हें पंखा झेल रही है। धबराइये मत जी। सब ठीक हो जायेगा। मार्च क्लोजिंग है। इनकम टैक्स भरना है तो क्या कीजियेगा। सोनू, टिंकू की फी बाद में भर देंगे। अरे भाग्यवान, वर्मा जी पानी पीकर थोड़ा राहत महसूस कर रहे थे। बाकी महीनों में भी तो यही हाल रहता है। एक तारीख का इंतजार और आते ही पूरे महीने की पगार साफ। हाथ पर सब्जी खाने तक के पैसे नहीं बचते। देखिये आपकी तबीयत ठीक नहीं है। वर्मा जी के हाथ से पानी का गिलास लेते मिसेज वर्मा बोली टेंशन मत कीजिये। इससे आप और बीमार पड़ जायेंगे। डाक्टरों ने आपको आराम करने की सलाह दी है। ऐसा करेंगे हम बजट एंड बजट कंपनी को एसएमएस कर वहां से फार्म मंगवा लेते हैं और कोई उपाय नहीं है हमारे पास। तभी मि.पलटू वर्मा जी एक मिनट प्लीज। क्या दिखाके करेंगे हमें टीवी पर आप मि.पलटू। वर्मा जी नाराज हो उठे। ये हमारे घर की नहीं पूरी इंडिया साइनिंग की हकीकत है। किस-किस के घरों में झांकेंगे आप। घर-घर की यही कहानी है। कहीं रोटी पर नमक नहीं, कहीं नमक है तो रोटी नहीं। तभी झाडूवाला का लड़का मम्मी ये कौन चैनल लगा दी सभी रो रहे हैं ममा। मिसेज झाडूवाला भी रो रही है। लड़का चैनल बदल देता है। कार्यक्रम चल रहा है। सास के खिलाफ बहू साजिश में लगी है। प्रचार आ जाता है- काजू सबका मन ललचाये, बटर पे दिल फिसल-फिसल जाये। मि.पलटू वर्मा और शर्मा जी के मिसेजों में ब्यूटी खोज रहे हैं। दिखायेंगे सब कुछ मि.शर्मा, मिसेज वर्मा से फिर मिलायेंगे सिर्फ इसी चैनल पर एक्सक्लूसिव, जाइयेगा मत। तब तक एक ब्रेक।

Wednesday, February 23, 2011

मुनसिफ खड़ा है खुद ही सजा के लिबास में

मुनसिफ खड़ा है खुद ही सजा के लिबास में
न्याय किसे चाहिये। अजमल कसाब को। आम आदमी को। रूपम पाठक को या विधायक केसरी को। मुंबई हाई कोर्ट की निचली अदालत के फैसले पर मुंबई की उच्च न्यायालय ने मुहर लगा दी है। आम आदमी पर इसकी कोई सार्थक प्रतिक्रिया नहीं है। चिदंबरम इस फैसले पर भले ही न्याय प्रणाली के प्रति आभार जताया हो पर जो आम आवाम है वो आज भी वहीं खड़ा है। सिर झुकाये खामोश। इतना ही नहीं महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के उस बयान से कतई हमदर्दी भी उसे नहीं कि यह फैसला लोकतंत्र की जीत या ऐतिहासिक है। ऐतिहासिक तो तब होता जब
पकड़े जाने के तुरंत बाद कसाब को होटल ताज के बाहर सरेआम उसे फांसी पर लटका दिया जाता लेकिन ऐसा कुछ होता नहीं दिखा। पाक भी अपनी जगह राग अलापता रहा और भारत भी कसाब को जिंदा रखने में करोड़ों पानी में बहा दिये। लोगों, आम-आवाम की नाराजगी, गुस्से को कहीं से शांति नहीं मिली। जलते जेहन को शांति तब मिलती जब कसाब के बचाव, उसे निर्दोष साबित करने वाला कोई काला कोट पहने अदालत में नहीं दिखता। लेकिन एक क्या, एक  के बाद एक चार काला कोटधारी उसके समर्थन में जिरह करते, तर्क, बहस करते दिखे। यह कैसी व्यवस्था है। कैसा न्याय है यह। किसी निर्दोष को न्याय दिलाना कोई गुनाह नहीं बल्कि उस पेशे का धर्म, ईमान है। लेकिन खुद को टीवी पर परोसना, अखबारों की सुर्खियों में छाये रहना। कसाब के साथ खुद को जोड़े रखना क्या है। पैसा, नेम एंड फेम में इस कदर अपने पेशे व देश के साथ नाइंसाफी क्यों। या फिर बाजारवाद व प्रचारवाद का महज हिस्सा बनकर समाज को आप क्या दिखाना चाहते हैं कि कसाब निर्दोष है। कसाब के उस फर्जी तर्क को न्याय के लिये परोसने कि पुलिस ने उसे अपराध की साजिश में फंसाने के लिये गिरगांव चौपाटी पर फर्जी मुठभेड़ की। वह निर्दोष है बच्चा है उसे छोड़ दो। यह दलील देने से पहले कहां गया रामायण, कुरान,बाइबिल व गीता की कसम। कम से कम उसे तो स्मरण कर लेते। इतना ही नहीं, अदालत भी उस तर्क के आगे सीसीटीवी फुटेज दो बार देखे। उसपर तुर्रा यह कि हमारे देश की माटी में पले-बढ़े काला कोट पहने कसाब की फांसी की सजा को अब सुप्रीम कोर्ट ले जाने की दलील देते उस आतंक के समर्थन में फिर से खड़े दिख रहे हैं। क्या न्याय का मतलब आज यही है। अगर है तो उस रूपम पाठक के बारे में काला कोट वाले क्यों नहीं सोचते। जिन्हें न्यायपालिका तक अपनी आवाज रखने के लिये कोई समर्थ काला कोट नहीं मिल रहा। रूपम पेशेवर अपराधी नहीं है। वह आतंकवाद का रूप नहीं है। आतंक फैलाने, खून की होली खेलने वाली मशीन नहीं है वो। वह कसाब नहीं है। वह तो समाज की अगुआ है। समाज की बहू-बेटी है। पढ़ी-लिखी शिक्षित शिक्षा की लौ जलाने वाली महिला है। कसाब की तरह आतंकवाद पोषित, सुरक्षित कठपुतली नहीं जो लोगों की जान लेने पाकिस्तान से यहां पहुंचता है। हां, यह सही है कि रूपम कसाब की तरह गोश्त नहीं परोस सकती। नतीजा भी सामने है। रूपम के समर्थन में कोई बहस करता नहीं दिखता। उसकी मां एक लाचार औरत, रहम की भीख मांग रही है पर कोई भी काला कोट पहने उस बेबस महिला की आवाज सुनने को तैयार नहीं है। कैसा तंत्र है यह और कितने भ्रष्ट हो गये हैं हम।  कसाब के बचाव में चार वकील और रूपम के समर्थन में एक भी नहीं। यही है न्याय। यही है व्यवस्था का असली चेहरा जो मुरझा अब कुंठित हो चुका है। मुंबई हमले में शहीद अशोक कामरे की पत्नी विनीता कामरे की ठहरी जिंदगी से बाहर आये शब्द एक बानगी है कि हर किसी की तरह उन्हें भी उम्मीद थी कि मुंबई न्यायालय कसाब की मौत की सजा की पुष्टि कर देगा-यानी आज भी कसाब उम्मीद पर ही टिका है। रूपम सलाखों के पीछे गुम है और अजमल आमिर कसाब मौत की सजा की खबर सुनकर भी मुस्कुरा रहा है। यही है हमारा सिस्टम जिसके बदौलत हम न्याय मिलने की टकटकी लगाये बैठे हैं और रहेंगे ता उम्र कि सच्चाइयों का कौन सुनाएगा फैसला, मुनसिफ खड़ा है खुद ही सजा के लिबास में।  

Saturday, February 19, 2011

चुलबुल पांडेय लायेगा वल्र्ड कप

भाई, जब से अपनी मुन्नी रिक्शे पर सवार हुई है रिक्शे वालों की तो मानो लाटरी खुल गयी। अब कलतक जो रईस शहजादे रिक्शे वालों को डर्टी मैन कहकर सवारी करने में तौहीन समझते थे अब पूरे खुले तौर पर हूड को हटाकर, उठाकर बदनाम होने लगे हैं रिक्शे की सवारी करके। इतना ही नहीं, रिक्शे वाले डिमांड में भी हैं। सो, साफ तौर पर उन्होंने माही से कह दिया-साहब, आप पर भरोसा है कि अबकी टीम इंडिया को आप बदनाम नहीं होने देंगे और वल्र्ड कप हम रिक्शा पर ढो कर लायेंगे सो हम ढाका चलते हैं आपको बैठाकर। वरना क्रिकेट आज जिस दलदल में है उसमें रिक्शा चलाना बहुत मुश्किल है साहब। कितनों को हम लाद सकेंगे। सट्टेबाज, मैच फिक्सर सब हमारे रिक्शा पर ही आंख गड़ाये है। क्रिकेट को साहब आप जैसे लोग ही स्टे ऑन खिला सकते हैं। अरे साहब, इससे तो बढिय़ा अपनी मुन्नी है। कम से कम डार्लिग के लिये ही तो झंडू बाम हुई लेकिन आजकल तो साहब ये बीसीसीआई वो क्या कहते हैं आईसीसी सबको साण्डहा आयल ही चाहिये। देखिये माही बाबू, हम रिक्शा वाले जरूर हैं लेकिन हैं एकदम खांटी देसी, शुद्ध, असरदार। हमरे खून में देश की आन-बान व शान है। हम शिव सैनिक नहीं हैं कि आपको लगड़ी भी मारेंगे और मरहम भी लगायेंगे। माही को कुछ समझ में नहीं आ रहा था। सो उसने वीरू को आंख मार दी। अब वीरू को तो जानते ही हैं आप साहेब। एकदम खन्नास शोले के ही वीरू बन गये लगे टॉस उछालने। कॉलर खड़ा कर लिया दबंग स्टाइल में। दोनों हाथ कमर पर। क्यों वे रिक्शा वाले क्या बिगाड़ा है तेरा शिव सेना वालों ने। क्यों उसे टोपगन बनाने पर तुले हो। अगर मास्टर ब्लास्टर ने सून लिया न तो जिंदगी भर आस्थमा प्लस खाते रहोगे। तब तक भच्जी भी कूद पड़े। अबे नवपुरुष टेवलेट तूसी को पता है तू क्या बोल रहा है। रिक्शा वाला जोर से झल्लाया और धीरे से फुसफुसाया मैं चुलबुल पांडेय क्या सुना चुलबुल पांडेय। एक बार जो कमीटमेंट किया उके बाद मैं अपने आप की भी नहीं सुनता समझे। एक तो धमकी देते हो ऊपर से
दुआ भी करते हो। अबे वो क्रिकेटरों वो तो मैंने माही से कमीटमेंट कर लिया था कि रिक्शे से ढाका लायेंगे सो लेकर आ गया वरना मैं तो तुम लोगों का मुंबई में दो अप्रैल को इंतजार करता। कान से मोबाइल हटाकर सुन लो, मुंबई पहुंचते ही शिव सैनिकों से जाकर कह देना ये दुआ और धमकी एक साथ देना बंद करे। माही को कुछ समझ नहीं आ रहा था। रिक्शा वाला मुंबई ये शिव सैनिक आखिर वह कहना क्या चाह रहा है। माही ने वीरू से  कहा, अबे पूछ न यार। वीरू एकदम शांत होकर पूछता है, हे चुलबुल पांडेय नुमा मेरे रिक्शा वाले भाई ये माजरा क्या है? रिक्शा वाला भी उसी अंदाज में धीरे से कहा वीरू बच्चा मत बन। माही से कह दे वल्र्ड कप घर रोज-रोज नहीं आता। शिव सैनिकों की चाल हम गरीब, अनपढ़ के दिमाग की बत्ती जला दी है। अरे पाक को धमकी भी दे रहो हो अगर वो फाइनल में पहुंचा तो मुंबई के वानखेडे में मैच नहीं होने देंगे और ये भी कामना कर रहे हो कि पाकिस्तान फाइनल में पहुंचे। अबे पाक फाइनल में पहुंचेगा तब ना जताओगे विरोध। तब तक वीरू का भेजा फ्राई हो चुका था। माजरा एकदम फेयर एंड लावली व मार्क रब की तरह साफ हो चुका था। बोला- भच्जी ये चुलबुल तो कमाल हे रे-चक दे इंडिया। गुड लक इंडिया मिलेंगे मुंबई में।  

Saturday, February 12, 2011

मैं बाबा वैलेंटाइन बोल रहा हूं...

दिल फसुरदा तो हुआ देख के उसको, लेकिन उम्र भर कौन जवां, कौन हंसी रहता है। पर एक हैं बाबा, जो हर दिल का शायर, धड़कन, प्यार का फरिश्ता है। जिसकी आहट से गुनगुनाती हुई आती है फलक  से बूंदें, लगता है कोई बदली उसकी पाजेब से
टकरायी है। जी हां, वहीं फरिश्ता वैलेंटाइन बाबा, जो आसमां से उतरेंगे हमारे बीच अगाध प्यार की सौगात लेकर। वो सौगात जिसमें है उन्मुक्ता, मस्ती, उन्माद, उल्लास, उमंग व नवसृजन की ताकत। यानी मदनोत्सव, जिसेे तूलिका बनाकर युवा वैलेंटाइन डे पर लिखेंगे दुलार का नवगीत। प्यार का पहला खत। माधुर्य, लावण्य सिंदुरी लाल रंग से सजाएंगे सेज। प्रेयसी का करेंगे तहे दिल से स्वागत। गुलमोहरी, रजनीगंधा के मनमोहक खुशबू में लवरेज। खुली बाहों से रात की चांदनी में दुपट्टे को जुल्फों के साये में लिपटाएंगे। धूप सेंकती कलियों को तोड़कर बिछायेंगे मखमली चादर। आगोश में सारा आकाश सहेजकर जिंदगी भर का स्नेह,रस्म निभायेंगे। इस उम्मीद, विश्वास के साथ कि थक गया हूं करते-करते याद तुमको, अब तुम्हें में याद आना चाहता हूं। जिस याद में उस ईश्वर रूपी प्रेमी पर भरोसा भी होगा, सुकून भी कि खफा जो आज है वो कल किसी बहाने से, गले में फूल सी बाहें भी डाल सकता है। उस कंधे का भरोसा भी जिसके सहारे प्यार आज भी जिंदा है। प्यार कोई मजहब नहीं होता। मंदिरों में बजते शंख या मस्जिद में अजान का नाम ही है प्यार। प्यार बच्चे की मुस्कुराहट में है। प्रेयसी की शर्मिली आंखों में बसने का नाम है प्यार। तभी मोबाइल की घंटी बजती है। पूछता हूं हैलो कौन? जवाब मिलता है- बच्चा मुझे नहीं पहचाना। मैं बाबा वैलेंटाइन बोल रहा हूं। क्या जीवन के रहस्य के बारे में नहीं जानोगे। मैंने कहा बाबा जीवन का मूल मंत्र जानने के लिये न जाने कितने वैलेंटाइन डे गुजार दिये लेकिन बाबा अब भी अज्ञान हूं। बाबा बोलने लगे-सुन, जीवन का मूल मंत्र है प्रेम व प्यार। जितना प्रेम बांटोगे उतना ही प्यार पाओगे। इसी प्रेम व प्यार के रस में राग भी है तो लय भी। ताल है तो सुर भी। कहीं कृष्ण की बांसुरी पर मुग्ध राधा है तो कहीं राम के धनुष के टंकार में सीता का वरण भी है प्यार। दुर्गा की तेज रूप को बाहों में सहेजने की चाह में महिषासुर भी है तो श्याम की याद में तड़पती मीरा की विरह-वेदना भी प्यार है। प्यार महज वो अहसास भर है जिसके क्षणिक आवेग में ही समस्त जीवन,ऊर्जा का समावेश हो जाता है। रामायण, महाभारत का उपदेश, गीता के शब्द, कुरान का ज्ञान, बाइबिल के अक्षर, बुद्ध का संदेश या भीष्म की प्रतिज्ञा भी तो प्यार ही है बच्चे। बाबा बोलते गये। प्यार स्वच्छंद गति में अवतरित वो खुशबू है जिसे कभी गुलाबों की पंखुडिय़ों में शहद तलाशते तितलियों की गुनगुनाहट, कभी हवाओं के फरेब से दरवाजे पर कोई दस्तक कि शायद वो आ गया हो हमारे करीब। बाबा वैलेंटाइन के शब्दों में मैं खोता, मुग्ध होते जा रहा था। बाबा बोलते जा रहे थे-प्यार की सरिता सरस्वती की वीणा में है। गुरु नानक की वाणी में है। उस बसंत में है जब लता-वल्लरियां लहलहा जाती है। खेतों में पीले
फूल नतमस्तक हो जाते हैं। पेड़-पौधों में नयी कोपलें फूटने लगती है। शायद खामोश जिंदगी को शब्द देने का नाम ही है प्यार। ऊबड़-खाबड़ जिंदगी में चुप रहकर किसी समतल की तलाश या जुवां खोलकर किसी उजड़ी हुई बस्ती को फिर से बसा देखना ही है प्यार। किसी अपने को खो देने के बाद फिर से उसका सामीप्य पाना ही प्यार की परिभाषा, जीत है। देर तलक किसी को जाते हुये देखना अच्छा लगे कि कोई मुड़कर देख ले दोबारा या इशारों में सायों की लकीरें खींचकर एहसास को पुख्ता कर दे। शायद, कोई लौट आये अपनी पुरानी हवेली में या किसी झाड़ फानुस के समान बेच दिया जाये बाजारों में। यह कहते-कहते बाबा चुप हो गये। मैंने पूछा बाबा चुप क्यों हो गये। एक तो इतने दिनों बाद बात कर रहे हो और कुछ बताओ न बाबा वैलेंटाइन। पता नहीं फिर कब आसमां से उतरोगे। बाबा बोले, बेटा मैं अब दोबारा प्यार का पैगाम बांटने नहीं आ सकता। बहुत दिनों से दिली इच्छा थी तुमसे बात करने की सो फोन कर लिया। मैं बाबा की बातें सुनकर बेचैन हो उठा। कहा, ऐसा मत कहो बाबा। पर वो मानने को तैयार नहीं हुये कहा मेरा नंबर मोबाइल में मत रखना। मेरा मन इस जमीन पर अब नहीं लगता जहां प्यार की खुलेआम मार्केटिंग होने लगे। आवो-हवा में प्यार के नाम पर नये-नये फ्लेवर के कंडोम का गंध पूरे समाज को गंदा कर दे। जहां पश्चिमी सभ्यता की भाषा, खुलापन महानगरों से लेकर छोटे शहरों व गांवों की पगडंडियों तक गंदा खेल खेले। जोड़े खुलेआम मदमस्त अंगड़ाई ले। कुसंस्कृति के बीच प्यार का जहां नाटक खेला जाता हो। वहां मैं कैसे रहूंगा। पर बाबा देखो फोन काटना मत एक बात बताते जाना। बाबा ने कहा बस इतना ही कहूंगा-उम्मीद है इस वैलेंटाइन डे पर यकीं है तुम यह मेरा संदेश लोगों तक पहुंचा देना- ना आयेगा कोई दोबारा स्वर्ग से, इस नरक की जिंदगी को बेहतर संवार दिया जाये। यह कहते-कहते बाबा मेरे फोन पर अवतरित हो उठे कहा- परेशान मत हो, आओ मिल-बैठकर बांटते हैं प्यार। गाते हैं खुशी के गीत कि शायद मां के आंचल से, बहन की राखी व वैलेंटाइन बाबा के दोबारा स्वर्ग से उतरने तक हम यूं ही मर्यादित, सुसंस्कृत बनें रहें। मैं हाथ जोड़कर प्रणाम करते कहा-जय वैलेंटान बाबा।