तीन बंदरों की दोस्ती
पोस्टेड ओन: May,20 2011 जनरल डब्बा में
गांधी जी अचानक अवतरित हो गये। उन्होंने अपने तीनों बंदरों को बुलाया। शांति, संप्रभुता के गुर सिखाये और तीनों को तीन देशों की यात्रा पर भेज दिया। पहला बंदर अमेरिका पहुंचा। दूसरा पाकिस्तान की सरजमीं पर तो तीसरा पड़ोस में चीन पहुंच गया। तीनों बंदर राजनीतिक, कूटनीतिक शब्दों से लैस। सांस्कृतिक एकता का पाठ रट चुके थे। भाषावाद, राष्ट्रवाद के सूत्र हर-हमेशा तीनों के मुंह पर। आतंकवाद, भ्रष्टाचार, अलगाववाद पर बहस, भाषण करने में तीनों माहिर, सक्षम। सो तीनों अलग-अलग देशों में अलग-अलग तरीके से रात्रि भोज में शामिल हुये। समानता यह कि तीनों गांधी टोपी लगाये हुये थे। पहला अमेरिकी बंदर, ओबामा को समझाया-सुनो कुछ भी नहीं सिर्फ जो मन आये करो, मारो। दूसरा पाकिस्तानी राष्ट्रपति गिलानी से मुखातिब था- कुछ बोलो नहीं, बस देखते जाओ। तीसरा, चीनी राष्ट्रपति हू जिन ताओ को पाठ पढ़ाया- न सुनो न देखो न ही कुछ बोलो। बस अपनी मनमर्जी, चुपचाप रहो। तीनों बंदर तीन दिनों की यात्रा व मेजबानी करने के बाद स्वदेश इंदिरा गांधी हवाई अड्डे पर उतरे। उनके समर्थक, कार्यकर्ता सबों ने गर्म-जोशी से उनका स्वागत किया। प्रेस वाले भी एक क्षण तीनों को कैमरे में कैद करने को बैचेन थे। एक बाइट प्लीज- तीनों बंदर कुछ बोलने से बच रहे थे। एक ने कहा-अमेरिका, पाक व चीन को भारत पर पूरा भरोसा है। अब भारत को कुछ सोचना, करना होगा। हम सोच रहे हैं कि हमें ऐसे हालात में क्या करने चाहिये। अफगानिस्तान जाना चाहिये या मोस्ट वांटेडों की सूची को और लंबी कर देनी चाहिये। हम सोचेंगे और उसके बाद आप लोगों को बहुत जल्द रास्ता दिखायेंगे। यह कहकर तीनों बंदर अलग-अलग उड़ानें पकड़ी और पहुंच गये वापस जहां से आये थे। अब चीन को यह बात खटकने लगी। उसे बंदर की बातें याद आने लगी। बंदर ने कहा था- पाकिस्तान उस दोराहे पर आज खड़ा है जहां से उसके तमाम रास्ते, विकल्प खुले हैं। वह आतंकवाद विरोधी मुहिम का हिस्सा भी है नहीं भी। वह गरीब भी है, अमीर भी। मदद के लिये उसके हाथ खुले भी हैं बंद भी। एक हाथ से वह अमेरिकी ताली पिट रहा है तो दूसरी तरफ वह तुम्हे चीनी-पाक भाई-भाई कह रहा है, तुम्हारा सहयोग भी ले रहा है। चीन लादेन प्रकरण पर कुछ बोलने के बदले अत्याधुनिक एटमी संयंत्रों का न सिर्फ जखीरा तैयार करने में बल्कि घरेलू स्तर पर यूरेनियम के भंडारों की खोज में तेजी से जुट गया। उधर, पाकिस्तानी अखबारों ने दूसरे बंदर को उछाल दिया कि चीन, खासकर लादेन के मारे जाने के बाद जिस खामोशी से अपना काम निबटाया, चुप्पी के बीच पाकिस्तान को हौले-हौले पुचकारा वह कहीं से भी पाक की सेहत के लिये शुभ संकेत नहीं है। इधर, अमेरिका में बंदर की बात से ओबामा परेशान। बंदर ने ओबामा को रात्रि भोज के बाद अलग से समझाया था। अरे ओबामा, कई आतंकी संगठनों से पाक के अस्पष्ट संबंधों को लेकर तुम्हारा प्रशासन पहले ही बंटा है। अब एक बार चीन को न्योता भेजो। कुछ मदद लो। चीन की बढ़ती ताकत के एहसास से तुम पहले से ही चिंतित हो। उसका अनुमान भी तुम्हें है। चीन के लिये ही तो तुमने जमीन से उड़ान भरकर मारने वाला ड्रोन तैयार कर रहे हो। वह सब बाद में बनाना। चीन कहीं पाक को ले न उड़े। इस पर ध्यान दो। तुम उसे कोएलिशन सपोर्ट फंड से 13 अरब दे भी रहे हो और वह गद्दार कहीं चीन से दोस्ती न गांठ लें। ओबामा का ध्यान भंग हुआ। उसे लगा बंदर की बात में दम है। अमेरिका की वाहवाही में उसका सबसे प्रबल व खतरनाक दुश्मन एक साइलेंट किलर सरीखे चीन लगातार पाक से रिश्ते गांठ रहा है। उसे सुरक्षित, संरक्षित, पोषित करने में जुटा है। यहां तक कि पूरे विश्व समुदाय को भी स्पष्ट संकेत दे रहा है कि पाक पर हमला चीन बर्दाश्त नहीं करेगा। पाक को पचास थंडर विमान भी दे रहा है। ओबामा ने फरमान सुनाया, चीन के विदेश मंत्री को आनन-फानन में अमेरिका बुलवाया। पाक को लेकर चिंता जतायी। दोनों ने पाक को लपेटे में लिया। एक रणनीति पर चीन ने बाद में गिलानी को चीन बुलाया। दूसरी तरफ, अमेरिका ने मुंबई हमले का राग अलापा। हमले में लश्कर-ए-तैयबा का हाथ बताया। भारत को भरोसा दिलाया, उसका खुफिया सबूत बुश प्रशासन ने ही लिखित तौर पर पाक को उपलब्ध करा दिया था अब पाक वांटेडों को पकडऩे उसे वापस इंडिया भेजने में दिलचस्पी दिखाये। इधर, तीनों बंदर ने आकर सामूहिक रूप से सच्चाई सरदार जी को बता दी। वे अफगानिस्तान पहुंच गये। कहने लगे गरीबी में जी रहे पाकिस्तानी जनता को वहां की सरकार चौथा रिएक्टर चालू कर क्या देना चाहती है। पाक का परमाणु हथियार कार्यक्रम इतनी तेजी से बढ़ रहा है कि वहां प्लूटोनियम के उत्पादन में वृद्धि के लिये शीघ्र ही चौथा रिएक्टर चालू हो जायेगा। काबुल में उसने अफगानिस्तान के राष्ट्रपति हामिद करजई से साफ कहा हमें बंदरों की बात पर पूरा यकीन है। चीन ने अपने स्वास्थ्य व्यय और स्वास्थ्य बीमा के जरिये भी भारत को पछाड़ अपने नागरिकों की सेहत के मामले में हमसे काफी अधिक सुधार कर लिया है। लादेन के मारे जाने के बाद अफगानिस्तान व पाक के बीच जो कटु रिश्ते बने हैं और पाक जो खुशाब परमाणु स्थल पर निर्माण कार्य में जुटा है वह अफगान व भारत के लिये चिंता का विषय है। चिंता तो यही है कि लादेन के ठिकाने पर अमेरिकी हमले को लेकर आयोजित पाक की नेशनल एसेंबली के संयुक्त सत्र के दौरान पाक सेना प्रमुख जनरल मुशफाक परवेज को सिगरेट मां कर पीनी पड़ी है। गुरुदेव रवींद्र नाथ टैगोर की 1924 की ऐतिहासिक चीन यात्रा की भावना का सहारा लेकर दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक संबंधों की आड़ में जो खेल चीन खेलना चाहता है उसे हमारे बंदर जान चुके हैं। लादेन के एबटाबाद में सैन्य अकादमी के पास सालों गुजारने से साफ है कि मुंबई हमले में आइएसआइ का हाथ है। अब अगर अमेरिका, चीन व पाक आतंकवाद के मुद्दे पर नहीं चेते, भारत को अलग-थलग करने की साजिश से बाज नहीं आये तो हमारे बंदर तीनों के मंसूबे नाकाब करने में सक्षम हैं। हम अगर किसी आतंकी को जी कह सकते हैं तो उसकी जान भी ले सकते हैं। कसाब के बारे में हमारा रूख देखकर भी अगर विश्व हमारी सहनशीलता का प्रमाण चाहता है तो हम तैयार हैं।
No comments:
Post a Comment