Wednesday, October 3, 2012

बेटी तो सेलेब्रिटी है


बेटी तो सेलेब्रिटी है

पोस्टेड ओन: 11 Dec, 2011 जनरल डब्बा में
बेटी यानी समाज को बदल डालने का जज्बा रखने वाली, एक खूबसूरत नायाब तोहफा, एक आइकन, एक क्षण में पराई हो जाती है। बचपन में पिता की गोद में, कंधे पर खेलती, इठलाती, हंसी-ठिठौली करने वाली बेटी अचानक स्यानी हो जाती है और बांध दी जाती है उस लंगर में जहां से उसकी पहचान, परंपरा, संस्कृति, जिंदगी की खुशहाली, तमाम उतार-चढ़ाव, दैहिक-मानसिक विवेचन, तमाम मर्यादाएं, रीति-रिवाज, रहन-सहन, सोच, पवित्रता के मायने बदल जाते हैं। यहां तक कि चेहरे पर चंद लाल सिंदूर के निशान के अर्थ, स्पंदन एक पल में उसे जन्म देने वाली मां से भी दूर वहां लेकर चली जाती है जहां बेटी बहू की श्रेणी में शामिल हो जाती है। उस दहलीज का उघार वहां से शुरू हो जाता है जब वह असाधारण, अलग जीवन का आवरण ओढ़ती-बिछाती, पति के संपूर्ण अध्यात्म को आत्मसात करने को विवश हो जाती है। सात फेरे क्या लगे बेटी दुल्हन बन अपनों से बेगानों की कतार, पंगत में खड़ी अपने अस्तित्व को नए सिरे से सजाने-संवारने में नि:शब्द उस अंतहीन सीढिय़ों पर चढऩे लगती है जिसपर कहीं वह सास की साजिश का फलसफा बुनती है कहीं स्वर्ग सी कामयाबी में गोता लगाती, घर परिवार को प्रशिक्षित, सुसंस्कारित करती पति का हाथ बंटाती समाज की अगुआ बनने का दंभ भी भरती है। बेटी का शाश्वत मतलब सत्य ही शादी है। बाप के जिंदगी की तमाम जमा-पूंजी फूंककर बेटी पराई हो जाती है। चाहे गरीब की औकात हो या अमीरी का ऐश्ववर्य व सामथ्र्य। बेटी तो बस सेलेब्रिटी है। गोद में पालने से लेकर पालकी पर बिठाने तक, स्वर्ग में तय उस क्षण का गवाह, रस्म निभाते लोग, मेहमान उस ब्याह के साक्षात गवाह, पंच बनते हैं जहां अभी-अभी तुरंत ब्रह्मा के सामने अग्नि को साक्षी मान बेटी एक क्षण में हंसते-हंसते जुदा हो गयी है। कभी घर नहीं लौट आने की कसम खाती वह पिता के गले लगकर फफक रही है तो दूर खड़ी मां के आंसू भी रुकने को बेताब नहीं। कितना बदल गयी है हमारी बेटी। कल ही तो जन्मी थी वो। पली-बढ़ी, पढ़ी-लिखी, बस्ता लेकर स्कूल जाने लगी थी। कब अचानक कालेज का चेहरा देखा। जिस घर में खेली, जिस तकिए पर सोने के लिए हर रोज भाई से लड़ती, झगड़ती, रुठती। जिस बेटी की फिक्र में मां-बाप असुरक्षा का बोध लिए चिंतित, सशंकित, ख्याल रखने को आतुर, परेशान रहते वह आज घर छोड़कर अभी-अभी घूमती समय की सुई में न जाने कब दूसरे की हो गयी पता ही न चला। जान, दिल की धड़कन उस प्यारी सी नन्ही सी बेटी जिसे बरसों पालनें, सत्कार, दुलारने में रात-रात भी गुनगुनाती, झपकी लेती मां जागती रही। एक नाचते-गाते बारात के आने पर, शहनाई की सुरीली तान के बीच, बैंड बाजे, बजते नगाड़े की मस्ती के साथ एक नौजवान उसका हाथ थामे लिए जा रहा है हमसे दूर, बहुत दूर। इस क्षण का न जाने हमें कब से था इंतजार। उस सुखद एहसास का स्पर्श पाने को कब से बेकरार मेरे अपने आंखों पर चंद आंसू लिए बेटी को सजाकर, दुल्हन, गुडिय़ा सी सुंदर आवरण में लपेट सदा के लिए उसे भेज, अपलक निहारते उसे दूर तलक जाते देख रहा हूं। जीवन भर के लिए अकेला छोड़ उस नाव में उसे बैठा, बांध आया हूं जहां से सैकड़ों, हजारों खुशियां या गम न जाने क्या-क्या है उसकी किस्मत में। उस तकदीर के कठोर नियम में उसके लिए क्या छूट है यही तलाशते, दो शब्द बेटी की मुख से सुनने को बरबस बेचैन हूं- हां पापा मैं ससुराल में खुश, ठीक हूं, आप कैसे हैं। वैसे, अपनों के लिए दो शब्द तलाश लेना आज की बेटियों के लिए बड़ी बात हैं। कारण, पढ़ी-लिखी, सुशिक्षित, आधुनिकता की गणित हमारी-आपकी बेटी बखूबी सीख, जान गयी है। वह एक ऐसे समाज को जीने, बुनने लगी है जहां से पीछे मुड़कर देखना उसके स्वभाव में नहीं। समय की तेज रफ्तार को गुलाम बनाती हमारी बेटी अब स्यानी हो गयी है। कभी दो शब्द, हालचाल, कुशलक्षेम पूछ ही ले इसी कटघरे में खड़ा सोचता, दुविधा में हूं कि कहीं मेरी आपकी बेटी भी उस शर्मा जी की बेटी की तरह एक नयी दुनिया न चुन ले। 16 साल की बेटी शालू अपने पिता शर्मा जी के पास बरसोंं बाद लौटी, आई है। उसकी मां दिल्ली में रहती है। शर्मा जी ने शालू की मां पर उसका अपहरण कर लेने की प्राथमिकी स्थानीय कोतवाली में दर्ज करायी थी। कोर्ट से फैसला आया है। शालू को पुलिस उसके पिता शर्मा जी के पास लाकर छोड़ गए हैं। लोग बताते हैं, शर्माजी भी कहते हैं, शालू की मां बदचलन है। तलाक के लिए दोनों पति-पत्नी कोर्ट का चक्कर लगा रहे हैं। फिलवक्त, दिनभर घुमंतू जिंदगी जीने वाले शर्मा जी के साथ रह रही शालू बीच में ही पढ़ाई छोड़ घर पर अकेली समय को जी रही है।
दृश्य दो : समाज की एक बेटी की शादी हो रही है। उस बेटी की चचेरी बहन की दोस्त शिल्पा भी शादी में पहुंची है। शादी के दो माह बाद ही शिल्पा को पति ने छोड़ दिया। शिल्पा बिल्कुल खामोश, आंखों की भाषा जानने, बोलने लगी है। न चेहरे पर रंज ना मुस्कुराहट की कोई लकीर। बस, एक जीती-जागती बूत बन गयी शिल्पा अपनी विधवा मां के बगल में बैठी एक सबक, एक सीख, एक अध्याय, एक विस्तृत विमर्श लेकर शामिल है उस शादी की खुशी में। आखिर शिल्पा का अब क्या होगा। क्या वह इस हाल में सामाजिक परत को खोलती, दैहिक, मानसिक प्रपंच को जीती रहेगी या इस 32 साला काया को किसी दूसरे पुरुष को विमर्श के लिए सिपुर्द करेगी। उससे छोटी बहन तनुष्का की हाल ही में शादी हुई है। शिल्पा खामोश है। खुद से, घर से, समाज से उसकी जुबान स्थिर, लब सील गए हैं। वह मेरी बेटी की शादी एक आराम कुर्सी पर लेटी रातभर देखती रही। कई शब्द उसके जेहन में जन्मते, मरते, अठखेलियां करते, ख्वाब टूटते, जुड़ते, किस्मत को बिखेरते, समेटते, देह का विमर्श, एक चर्चा को आवेग देने को लालायित, दर्द से लबरेज, शिकन लिए उसका चेहरा उस शादी की उमंग में कहीं खुद को दफन किए हुए था कि आखिर इन जैसी लड़कियों का होगा क्या, जो समाज से कट चुकी, बहिष्कृत है।
उस बेटी का क्या होगा जिसे रात में उसके दोस्त ने मोबाइल से सुनसान जगह पर आने को कहा जहां पहुंचते ही तीन-चार मनचलों ने उसके शरीर को सामूहिक तार-तार कर दिया। वहां से भागती-बेचारी रास्ते में फिर बदमाशों की भोग्या बन गयी। बिहार की इस घटना पुरुष समाज पर एक तमाचा है जो किराए पर कोख देने वाली बेटियों के बल पर ही बेऔलाद नहीं रहते, उसी बेटियों की कोख से खुद को बाप कहलाने का दंभ भरते हैं। भंवरी देवी के पति आज अपनी ही पत्नी की खातिर जेल के सलाखों के पीछे हैं तो दुनिया की दूसरी सबसे धनी महिला व दुनिया की टॉप कॉस्टमेटिक कंपनी की मालकिन लिलियन को बेटी फ्रैंकोइस से ही चुनौती मिल रही है। आखिर, बेटी सेलेब्रिटी जो ठहरी।
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