Friday, September 16, 2011

जिंदगी ना मिलेगी दोबारा


जिंदगी ना मिलेगी दोबारा

पोस्टेड ओन: 18 Jul, 2011 जनरल डब्बा में
जिंदगी दोबारा नहीं मिलेगी। यह बहुत कम लोग सोचते हैं। वैसे भी जिंदगी सब अपने-अपने तरीके से जीते हैं। जीना भी चाहिए। जिंदगी उनकी है। वो जिस तरीके से चाहे अपनी जिंदगी जी सकते हैं। सबसे अहम यह है कि आखिर जिंदगी है क्या चीज। लोग कहां से आते हैं। कहां चले जाते हैं। आने और जाने के क्रम में वो क्या करते हैं। उन्हें क्या नहीं करना चाहिए। जो वो करते हैं वो कहां तक सही है। जो नही करते वो कहां तक उन्हें करना चाहिए। वो जिस चीज को नहीं किया क्या वह ठीक है या उन्हें वो करना चाहिए था। तमाम सवालों के बीच प्रश्न है जीवन क्या है। हमारे जीने का मकसद क्या है। बच्चा पैदा करो। बच्चे में लग जाओ। उसको बड़ा करने में लगे रहो। पढ़ाने में जुटे रहो। उसको लायक बनाओ। फिर उसे नौकरी नहीं मिलने का टेंशन लो। उसका टेंशन लेकर किसी तरह उसे नौकर मिल जाने तक लगे रहो बच्चों में। इस क्रम मे अपने मां-बाप को भूल जाओ। बूढ़े मां-बाप से बात करने की फुर्सत तलाशते रहो। उसे तिरस्कार भाव से देखते रहो और अपने बच्चों को पालते रहो, उसी में लगे रहो। फिर उस नौकरी पेशा बच्चों की शादी करो। शादी करके वह फिर तुम्हारी ही तरह गलती दोहराएगा। करेगा वो भी तुम्हारी ही तरह एक बच्चा पैदा। चूंकि वो तुमसे ज्यादा पढ़ा-लिखा है, कानवेंट का प्रोडक्ट। फर्राटेदार अंग्रेजी साथ में और भी बहुत कुछ। आखिर वो ठहरा जो तुमसे ज्यादा अपडेट, सो ऊंची सोसायटी की बात करने लगा है। अपने बच्चों को नामी शहर के नामी कानवेंट में दाखिला करवा रहा है। हजारों रुपये नाम लिखाने में खर्च कर रहा है। उसका बेटा हर रोज कानवेंट स्कूल से पढ़कर घर लौटता है। तोतली भाषा में अपने डैड व मॉम को नए-नए खिस्से सुनाता है। मां-बाप उसी से खुश हैं। अपने मां-बाप को भूल जाने का गम उन्हें नहीं है। वो तो हर रोज उसी बच्चे को पालने में लगे हैं। बड़ा होकर वो भी नौकरी करने लगा है। अपने मां-बाप को भूल अपनी बीवी के साथ मौज ऐश कर रहा है। अभी इसके बच्चे नहीं हुए हैं। डाक्टर कहते हैं, कम्लीकेशन है पत्नी को, जिसकी दवा चल रही है। सुबह-सुबह ही क्लिनिक से खुशखबरी आयी है। पप्पू पास हो गया है अब वो भी लोगों का मुंह मीठा करवाएगा। दवा असर कर गयी है। वो बाप बनने वाला है। उसकी पत्नी गर्भवती है। उसे लगने लगा है जैसे उसे प्रधानमंत्री की कुर्सी रातों-रात मिल गयी हो। खुशी से वह झूम उठा है। घर में तरह-तरह के खिलौने सजा दिये गये हैं। सुंदर बच्चों की तस्वीर कोने में, बेडरूम में लटक गए हैं। अभी से ही वह अपने बच्चे का रूम भी सजाना शुरू कर दिया है। यानी अभी से उसे अलग रखने की तैयारी हो गयी है। बड़ा होकर ऐसा ही बच्चा अपने मां-बाप से अलग हो जाता है। मां-बाप की जिंदगी को ठुकराकर, उससे बंटवारा कर अपने को अलग कर लेता है। रहता है अपनी बीवी व बच्चों के साथ कहीं दूर किसी अंजान शहर में। जहां उसे देखने वाला पहचानने वाला उसे अपना कहने वाला कोई नहीं है। सिर्फ मतलब के सब यार हैं। इनके साथ समय वो गुजार लेता है लेकिन अकेले में खुद को दुत्कारता भी है कि किस लोगों के साथ वह उठता-बैठता है। उसके साथ जो कहीं से भी मानव जैसा बर्ताव नहीं करते हैं। खुद आदमी होते हुये जानवरों जैसा सलूक करते हैं। ईमान-धर्म को बेचकर दूसरों का पैसा भी हजम-हड़प लेना चाहते हैं। बेचता है वह रोज अपने ईमान को, बीवी को भी दाव पर लगाने से नहीं चूकता है। उसके लिये पैसा से बढ़कर कोई भगवान नहीं है। उसके लिए जीवन का, इस खूबसूरत जिंदगी का मकसद ही यही है पैसा कमाओ चाहे जहां से भी लाओ। पत्नी कहती है पैसा लाओ, बच्चे कहते हैं पैसा कमाओ। इसके लिए चाहे किसी का खून, बलात्कार, डकैती को भी अंजाम देना पड़े तो दो। बिन सोचे दूसरों की जमीन हड़प सकते हो तो हड़प लो। बेच सकते हो खुद को दूसरों के हाथ तो बेच लो बस हर-हाल में पैसा रहना चाहिए अपने पास। यही सोच लेकर आज जिंदा है हर आदमी। दूसरों की जिंदगी से खेलकर खुद पैसे की चाह में भटक रहा आदमी। यह तनिक भी नहीं सोचता, जिंदगी न मिलेगी दोबारा। वह यह नहीं सोचता हर नफस पर, इस जिंदगी पर जिसे तुम जी रहे हो, ना जाने कब स्तब्ध, मौन, ठप पड़ जाए और तुम पंचतत्व में विलीन हो जाओ। अखबारों में खबरें छपेंगी एक आदमी सड़क पर हादसे का शिकार। अपने दो मिनट का मौन रखेंगे, कुछ दिनों बाद तुम भूला दिए जाओगे। तुम्हारा बेटा तुम्हारी कोई तस्वीर जो घर के किसी कोने में पड़ा भी होगा उठाकर कवाड़खाने में बेच डालेगा। अब भी वक्त है। ए मानव, कुछ देर के लिए ही सही ठहरो, रूको और सोचो क्या जिंदगी मिलेगी फिर दोबारा।

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29 प्रतिक्रिया
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नवीनतम प्रतिक्रियाएंLatest Comments

SATYA SHEEL AGRAWALके द्वारा
July 29, 2011
मनोरंजन जी बहुत अच्छा लगा आपका लेख पढ़ कर शायद इन्सान तो पागल है जो बिना किसी मकसद के भौतिकवाद में डूबा रहता है जबकि उसे मालूम है अंत सबका शून्य ही है.’”जरा सोचिये” नाम से मेरे ब्लॉग पढ़ कर अपनी राय दें धन्यवाद
    manoranjan thakur के द्वारा
    August 15, 2011
    धन्यवाद श्री अग्रवाल जी
shailendra के द्वारा
July 28, 2011
Superb sir…..
your thought are really admirable
Raj Aryan के द्वारा
July 22, 2011
मनोरंजन जी आपकी हर एक कहानी में नयापण और अपनापन होता है….हम आपके रचनाओ का बहुत ही बेसब्री से इन्तेजार करते रहते hain
    manoranjan thakur के द्वारा
    July 25, 2011
    बहुत सुक्रिया राज जी
sujeet jha के द्वारा
July 22, 2011
मैं जिन्दगी न मिलेगी दोबारा चलचित्र व् देखने गया था परन्तु उससे ज्यादा अची रचना आपकी है….
    manoranjan thakur के द्वारा
    July 25, 2011
    thanks sujeetji
Subrat Thakur के द्वारा
July 22, 2011
एक बहुत ही अची सोच आपके द्वारा , जिन्दगी क प्रति नजरिया ….लाजवाब…
    manoranjan thakur के द्वारा
    July 25, 2011
    aap ki sarahna sachmuch lajwaw
Rajesh Thakur के द्वारा
July 22, 2011
जिन्दगी एक जूनून एक दीवानगी है , जिसे उसी जूनून और दीवानगी क साथ जीने पे इसका सही मजा आता है
    manoranjan thakur के द्वारा
    July 25, 2011
    lot of thanks
Santosh Kumar के द्वारा
July 19, 2011
आदरणीय ठाकुर जी , सादर प्रणाम ,…. दिल,दिमाग को हिला देने वाला आलेख ,……..सबकुछ जानते हुए हम अनजान बने रहना चाहते हैं ,…….बहुत बहुत शुभकामनायें .
    manoranjan thakur के द्वारा
    July 19, 2011
    बहुत बहुत धन्यवाद आपको श्री संतोस जी
Nikhil के द्वारा
July 19, 2011
मनुष्य के दोहरे चरित्र का बखूबी वर्णन किया है आपने. सब जानते हुए कुछ न जानने की इंसान की कला के क्या कहने. बधाई.
    manoranjan thakur के द्वारा
    July 19, 2011
    बहुत धन्यवाद
nishamittal के द्वारा
July 19, 2011
शायद यही मृग तृष्णा है,सबकुछ जानते हुए भी इस दुश्चक्र में उलझे रहना.
    manoranjan thakur के द्वारा
    July 19, 2011
    बहुत बहुत बधाई जो आपने सराहा बहुत धन्यवाद
संदीप कौशिक के द्वारा
July 18, 2011
शाश्वत लेकिन कड़वे सत्य का बोध कराता आलेख !!
आपको हार्दिक बधाई आदरणीय मनोरंजन जी !!
:)
    manoranjan thakur के द्वारा
    July 19, 2011
    श्री संदीपजी आपको सुक्रिया बहुत धन्यवाद
Rajkamal Sharma के द्वारा
July 18, 2011
आदरणीय ठाकुर साहिब …..आदाब !
जब एक आम आदमी पर सत्संग में जाकर + श्रधा से सुनी गई बात सुनकर कोई फर्क नहीं पड़ता है तो उसे और किसी की किसी भी बात से कोई भी सरोकार नहीं है सिवाय अपने निर्धारित किये हुए लक्ष्य पाने के …..
बहुत ही सुन्दर पोस्ट के लिए आपका आभार
    manoranjan thakur के द्वारा
    July 18, 2011
    श्री राजकमल भाई बहुत आभार बहुत धन्यवाद
ritesh के द्वारा
July 18, 2011
very intrasting topic thanks
    manoranjan thakur के द्वारा
    July 18, 2011
    thanks riteshji
rajat के द्वारा
July 18, 2011
bahut hi badiya jiwan ka sachitra chitran
    manoranjan thakur के द्वारा
    July 18, 2011
    bahut dhanyabad
abhay के द्वारा
July 18, 2011
very nice and real
    manoranjan thakur के द्वारा
    July 18, 2011
    aap ka sahyog hai
nishir के द्वारा
July 18, 2011
jindgi sahi nahi meelagi dowara
    manoranjan thakur के द्वारा
    July 18, 2011
    aap ne jana sukriya

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